संतान सप्तमी व्रत
सप्तमी व्रत विधि |
संतान सप्तमी व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष कि सप्तमी तिथि के दिन किया जाता है. इस वर्ष 1 सितम्बर, 2014 को सोमवार के दिन मुक्ताभरण संतान सप्तमी व्रत किया जाएगा. यह व्रत विशेष रुप से संतान प्राप्ति, संतान रक्षा और संतान की उन्नति के लिये किया जाता है. इस व्रत में भगवान शिव एवं माता गौरी की पूजा का विधान होता है. भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी का व्रत अपना विशेष महत्व रखता है.
सप्तमी का व्रत माताओं के द्वारा किया अपनी संतान के लिये किया जाता है इस व्रत को करने वाली माता को प्रात:काल में स्नान और नित्यक्रम क्रियाओं से निवृ्त होकर, स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके बाद प्रात काल में श्री विष्णु और भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए. और सप्तमी व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
निराहार व्रत कर, दोपहर को चौक पूरकर चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेध, सुपारी तथा नारियल आदि से फिर से शिव- पार्वती की पूजा करनी चाहिए.सप्तमी तिथि के व्रत में नैवेद्ध के रुप में खीर-पूरी तथा गुड के पुए बनाये जाते है. संतान की रक्षा की कामना करते हुए भगवान भोलेनाथ को कलावा अर्पित किया जाता है तथा बाद में इसे स्वयं धारण कर इस व्रत की कथा सुननी चाहिए.
लोमश मुनि बोले - हे देवी - भाद्र पद की सप्तमी को जलाशय में स्नान करके तट पर एक मंडल बनाये ! उसके मध्य में पार्वती और शिव जी के आकार को बनाकर स्थापित करे ! सम्यक प्रकार से पूजन व् अर्चन कर सूत धारण करे !
नियम से यह संकल्प करे कि हे शिव जी मैंने आपके चरणों में अपनी आत्मा को समर्पित कर दिया हैं ! इस प्रकार उसी समय से सूत को चाहे वह स्वर्ण की हो या चांदी की पार्वती जी व् शिव जी का स्वरुप मानकर अपनी भुज पर धारण कर ले !
फिर प्रतिमास या या प्रतिपक्ष अथवा प्रतिवर्ष सप्तमी के दिन मालपूए और जलेबी का दान करे !
आप भी उसी मंडलक वेस्ट्को का भोजन ग्रहण करे !
हे देवी यदि व्रत भंग होता हैं , तो प्रतिपक्ष यह व्रत करे ! किन्तु सुक्ल पक्ष की सप्तमी को इस व्रत को अवश्य करे ! हे देवकी वर्ष बीतने पर व्रत के अंत में पारण के समय अपनी शक्ति अनुरूप सुवर्ण या चांदी की अंगूठी बनवा कर उसे तोमड़ी के लिए ब्राह्मण को दे !
संभव हो तो सुवर्ण की हि अंगूठी समर्पित करे ! उस अंगूठी के साथ कुमकुम, सिंदूर, ताम्बुल, अंजन, और सुवर्ण, - चांदी या सूत के डोरे का भी दान करे !
व्रत की पूर्ति के लिए सुवासिनी को भी पूजे ! जो स्त्री इस पूर्वोक्त विधि से सन्तति सुख बढ़ाने वाले व्रत को करती हैं वह सब बातों से निर्मुक्त होकर निष्कंटक सौभाग्य सुख को भोगती हैं!
इस लोक में सन्तति सुख को भोग कर परलोक में शिव जी द्वारा पद व् प्रतिष्ठा प्राप्त करती हैं !
ऐसे ही मैंने देवी आपके सम्मुख विधि और उसका महात्म्य वर्णित किया !
हे देवी अब आप इस मुक्त भरण व्रत को करे जिससे जिवोत्पुत्र हो जाओ !
श्री कृष्णा जी युधिस्ठिर से बोले - हे राजन यह कहकर लोमेश ऋषि वहा से अंतर्ध्यान हो गए !
जिस विधि से लोमेश ऋषि ने व्रत करने को कहा तदनुसार मेरी माता देवकी ने यह व्रत किया ! उस व्रत के प्रभाव से देवकी माँ के पुत्र चिरायु हुए !
इससे यह व्रत पुरुष और स्त्रियाँ दोनों ही कर सकते हैं !
यह व्रत पापों का विनाशक और दुःख संताप हटाने वाला और सुख संताप बढ़ाने वाला व्रत हैं !
जो भक्ति के साथ इस व्रत को करता हैं एवं दूसरों को इस व्रत के बारे में बताता हैं , कथा सुनाता हैं , सुनता हैं , विधि बताता हैं वह भी सभी पापों से मुक्त हो जाता हैं !
दैहिक व् पर लौकिक सुख और मोक्ष पद की कामना रखती हुई जो स्त्री अन्तःकरण से भगवान शिव जी का ध्यान कर इस व्रत को करके कथा सुनती है , वह इस लोक में जो दुःख हैं , उन सब दुखों से छूटकर चिरंजीवी पुरों वाली हो जाती हैं!
यह कथा भविष्य पुराण से ली गई हैं और इस प्रकार इस कथा का समापन होता हैं !
संतान सप्तमी व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष कि सप्तमी तिथि के दिन किया जाता है. इस वर्ष 1 सितम्बर, 2014 को सोमवार के दिन मुक्ताभरण संतान सप्तमी व्रत किया जाएगा. यह व्रत विशेष रुप से संतान प्राप्ति, संतान रक्षा और संतान की उन्नति के लिये किया जाता है. इस व्रत में भगवान शिव एवं माता गौरी की पूजा का विधान होता है. भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी का व्रत अपना विशेष महत्व रखता है.
सप्तमी का व्रत माताओं के द्वारा किया अपनी संतान के लिये किया जाता है इस व्रत को करने वाली माता को प्रात:काल में स्नान और नित्यक्रम क्रियाओं से निवृ्त होकर, स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके बाद प्रात काल में श्री विष्णु और भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए. और सप्तमी व्रत का संकल्प लेना चाहिए.
निराहार व्रत कर, दोपहर को चौक पूरकर चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेध, सुपारी तथा नारियल आदि से फिर से शिव- पार्वती की पूजा करनी चाहिए.सप्तमी तिथि के व्रत में नैवेद्ध के रुप में खीर-पूरी तथा गुड के पुए बनाये जाते है. संतान की रक्षा की कामना करते हुए भगवान भोलेनाथ को कलावा अर्पित किया जाता है तथा बाद में इसे स्वयं धारण कर इस व्रत की कथा सुननी चाहिए.
लोमश मुनि बोले - हे देवी - भाद्र पद की सप्तमी को जलाशय में स्नान करके तट पर एक मंडल बनाये ! उसके मध्य में पार्वती और शिव जी के आकार को बनाकर स्थापित करे ! सम्यक प्रकार से पूजन व् अर्चन कर सूत धारण करे !
नियम से यह संकल्प करे कि हे शिव जी मैंने आपके चरणों में अपनी आत्मा को समर्पित कर दिया हैं ! इस प्रकार उसी समय से सूत को चाहे वह स्वर्ण की हो या चांदी की पार्वती जी व् शिव जी का स्वरुप मानकर अपनी भुज पर धारण कर ले !
फिर प्रतिमास या या प्रतिपक्ष अथवा प्रतिवर्ष सप्तमी के दिन मालपूए और जलेबी का दान करे !
आप भी उसी मंडलक वेस्ट्को का भोजन ग्रहण करे !
हे देवी यदि व्रत भंग होता हैं , तो प्रतिपक्ष यह व्रत करे ! किन्तु सुक्ल पक्ष की सप्तमी को इस व्रत को अवश्य करे ! हे देवकी वर्ष बीतने पर व्रत के अंत में पारण के समय अपनी शक्ति अनुरूप सुवर्ण या चांदी की अंगूठी बनवा कर उसे तोमड़ी के लिए ब्राह्मण को दे !
संभव हो तो सुवर्ण की हि अंगूठी समर्पित करे ! उस अंगूठी के साथ कुमकुम, सिंदूर, ताम्बुल, अंजन, और सुवर्ण, - चांदी या सूत के डोरे का भी दान करे !
व्रत की पूर्ति के लिए सुवासिनी को भी पूजे ! जो स्त्री इस पूर्वोक्त विधि से सन्तति सुख बढ़ाने वाले व्रत को करती हैं वह सब बातों से निर्मुक्त होकर निष्कंटक सौभाग्य सुख को भोगती हैं!
इस लोक में सन्तति सुख को भोग कर परलोक में शिव जी द्वारा पद व् प्रतिष्ठा प्राप्त करती हैं !
ऐसे ही मैंने देवी आपके सम्मुख विधि और उसका महात्म्य वर्णित किया !
हे देवी अब आप इस मुक्त भरण व्रत को करे जिससे जिवोत्पुत्र हो जाओ !
श्री कृष्णा जी युधिस्ठिर से बोले - हे राजन यह कहकर लोमेश ऋषि वहा से अंतर्ध्यान हो गए !
जिस विधि से लोमेश ऋषि ने व्रत करने को कहा तदनुसार मेरी माता देवकी ने यह व्रत किया ! उस व्रत के प्रभाव से देवकी माँ के पुत्र चिरायु हुए !
इससे यह व्रत पुरुष और स्त्रियाँ दोनों ही कर सकते हैं !
यह व्रत पापों का विनाशक और दुःख संताप हटाने वाला और सुख संताप बढ़ाने वाला व्रत हैं !
जो भक्ति के साथ इस व्रत को करता हैं एवं दूसरों को इस व्रत के बारे में बताता हैं , कथा सुनाता हैं , सुनता हैं , विधि बताता हैं वह भी सभी पापों से मुक्त हो जाता हैं !
दैहिक व् पर लौकिक सुख और मोक्ष पद की कामना रखती हुई जो स्त्री अन्तःकरण से भगवान शिव जी का ध्यान कर इस व्रत को करके कथा सुनती है , वह इस लोक में जो दुःख हैं , उन सब दुखों से छूटकर चिरंजीवी पुरों वाली हो जाती हैं!
यह कथा भविष्य पुराण से ली गई हैं और इस प्रकार इस कथा का समापन होता हैं !
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