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Sunday, 10 May 2015

शाम के समय ये उपाय करने से शीघ्र मिलती है हनुमानजी की कृपा

By flipkart   Posted at  22:32   ASTROLOGY No comments


शाम के समय  ये उपाय करने से शीघ्र मिलती है हनुमानजी की कृपा

कलियुग में हनुमानजी की पूजा सबसे जल्दी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाली मानी गई है। जो भी व्यक्ति सही विधि से बजरंग बली को मनाने का उपाय करता है, उसे जल्दी ही शुभ फल प्राप्त हो सकते हैं। यदि आप भी हनुमानजी के भक्त हैं और धन संबंधी समस्याओं से मुक्ति पाना चाहते हैं तो यहां दीपक का एक उपाय बताया जा रहा है। यह उपाय सूर्यास्त के बाद करना है।

ये सामान्य सावधानियां उपाय करने से पहले ध्यान रखें
हनुमानजी के पूजन में साफ-सफाई और पवित्रता का विशेष ध्यान रखना अनिवार्य है। किसी भी प्रकार की अपवित्रता नहीं होनी चाहिए। जब भी पूजा करें, तब हमें मन से और तन से पवित्र हो जाना चाहिए। पूजन के दौरान गलत विचारों की ओर मन को भटकने न दें। यह कुछ सामान्य सावधानियां हैं, जो कि हनुमानजी का उपाय करते समय ध्यान रखनी चाहिए।

जरूरी हैं ये चीजें उपाय के लिए : मिट्टी का दीपक, सरसो का तेल, रूई की बत्ती, सिंदूर, चमेली का तेल, अगरबत्ती, पुष्प-हार और बैठने के लिए साफ आसन।

जानिए उपाय की विधि…
शाम को सूर्यास्त के बाद किसी भी हनुमानजी के मंदिर जाएं। इसके पूर्व पवित्र हो जाना चाहिए। मंदिर पहुंचकर हनुमानजी के सामने साफ आसन पर बैठें और सरसो के तेल का दीपक लगाएं। दीपक चौमुखा होना चाहिए यानी बत्ती इस प्रकार लगाएं कि दीपक को चारों ओर से जलाया जा सके। इस प्रकार दीपक लगाने के साथ ही अगरबत्ती, पुष्प आदि अर्पित करें। सिंदूर, चमेली का तेल चढ़ाएं। दीपक लगाते समय हनुमानजी के मंत्रों का जप करना चाहिए। मंत्र- ऊँ रामदूताय नम:, ऊँ पवन पुत्राय नम: आदि। इसके बाद हनुमान चालीसा का जप करें।

यदि आप पूरी हनुमान चालीसा पढऩे में समर्थ न हों तो कुछ पंक्तियों का जप भी कर सकते हैं। इस उपाय से बहुत जल्द व्यक्ति का बुरा समय दूर हो सकता है। धन संबंधी परेशानियां दूर हो सकती हैं। दी गर्इ तीन तस्वीरें छुएं और अंदर स्लाइड़स में जानिए हनुमानजी से जुड़ी कुछ और बातें…

Thursday, 7 May 2015

जानिए महाभारत में कौन किसका अवतार था

By flipkart   Posted at  23:17   ASTROLOGY No comments


भारत का प्राचीन इतिहास ग्रंथ 'महाभारत' कई रहस्यों से भरा हुआ है। इसका प्रत्येक पात्र अपने आप में एक रहस्य है। महाभारत को ‘पंचम वेद’ कहा गया है। यह ग्रंथ हमारे देश के मन-प्राण में बसा हुआ है। यह भारत की राष्ट्रीय गाथा है। इस ग्रंथ में तत्कालीन भारत (आर्यावर्त) का समग्र इतिहास वर्णित है। अपने आदर्श स्त्री-पुरुषों के चरित्रों से हमारे देश के जनजीवन को यह प्रभावित करता रहा है। इसमें सैकड़ों पात्रों, स्थानों, घटनाओं तथा विचित्रताओं व विडंबनाओं का वर्णन है। प्रत्येक हिन्दू के घर में महाभारत होना चाहिए।

महाभारत में जितने भी प्रमुख पात्र थे वे सभी देवता, गंधर्व, यक्ष, रुद्र, वसु, अप्सरा, राक्षस तथा ऋषियों के अंशावतार थे। उनमें से शायद ही कोई सामान्य मनुष्य रहा हो। महाभारत के आदिपर्व में इसका विस्तृत वर्णन किया गया है। आओ जानते हैं कि कौन किसका अवतार था।

भगवान श्रीकृष्ण : 64 कला और अष्ट सिद्धियों के पूर्ण श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। माना जाता है कि वे अपने पिछले जन्म में मनु थे।

बलराम : महाबली बलराम शेषनाग के अंश थे। जब कंस ने देवकी-वसुदेव के 6 पुत्रों को मार डाला, तब देवकी के गर्भ में भगवान बलराम पधारे। योगमाया ने उन्हें आकर्षित करके नंद बाबा के यहां निवास कर रही श्रीरोहिणीजी के गर्भ में पहुंचा दिया इसलिए उनका एक नाम संकर्षण पड़ा। बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण उन्हें बलभद्र भी कहा जाता है। कृष्ण के बड़े भाई होने के कारण उन्हें 'दाऊजी' कहा जाता है। बलरामजी का विवाह रेवती से हुआ था। महाभारत युद्ध में बलराम तटस्थ होकर तीर्थयात्रा के लिए चले गए। यदुवंश के संहार के बाद उन्होंने समुद्र तट पर आसन लगाकर अपनी लीला का अंत कर लिया था। उनके शौर्य की गाथाएं अनेक हैं।

भीष्म : कृष्ण के बाद भीष्म का नंबर आता है, जो महाभारत के प्रमुखों में से एक थे। 'द्यु' नामक वसु ने ही भीष्म के रूप में जन्म लिया था। वसिष्ठ ऋषि के शाप व इंद्र की आज्ञा से आठों वसुओं को शांतनु-गंगा से उत्पन्न होना पड़ा। 7 को तो गंगा ने नदी में बहा दिया जबकि 8वें वसु 'द्यु' जिंदा रह गए वहीं भीष्म थे जिनका प्रारंभिक नाम 'देवव्रत' था।

द्रोणाचार्य : भीष्म के बाद द्रोणाचार्य को सबसे अहम माना जाता है। देवगुरु बृहस्पति ने ही द्रोणाचार्य के रूप में जन्म लिया था।

अश्वत्थामा : उपरोक्त के बाद अश्‍वत्थामा सबसे अहम है। गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे अश्‍वत्थामा। पिता- पुत्र की जोड़ी ने मिलकर महाभारत में कोहराम मचा दिया था। अश्‍वत्थामा को महादेव, यम, काल और क्रोध के सम्मिलित अंश से उत्पन्न किया गया था।

कर्ण : देवताओं में सबसे प्रमुख सूर्यदेव के पुत्र थे कर्ण। कर्ण सूर्य के अंशावतार थे। कर्ण के बारे में सभी जानते हैं कि वे सूर्य-कुंती पुत्र थे। उनके पालक माता-पिता का नाम अधिरथ और राधा था। उनके गुरु परशुराम और मित्र दुर्योधन थे। हस्तिनापुर में ही कर्ण का लालन-पालन हुआ। उन्होंने अंगदेश के राजसिंहासन का भार संभाला था। जरासंध को हराने के कारण उनको चंपा नगरी का राजा बना दिया गया था।

दुर्योधन : दुर्योधन कलियुग का तथा उसके 100 भाई पुलस्त्य वंश के राक्षस के अंश थे। दुर्योधन हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र और गांधारी के 100 पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र था। वेद व्यास के वरदान से ही गांधारी के 100 पुत्रों का जन्म हुआ था। दुर्योधन के असंख्य कुकृत्य के कारण अंततोगत्वा कौरव और पांडवों में युद्ध आरंभ हो गया। दुर्योधन गदा युद्ध में पारंगत था और श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का शिष्य था। दुर्योधन ने कर्ण को अपना मित्र बनाया था। गांधारी द्वारा देखे जाने से उसका शरीर वज्र के समान हो गया था लेकिन कृष्ण के छल के कारण उसके गुप्तांग का स्थान कठोर नहीं हो पाया जिसके चलते महाभारत युद्ध में भीम ने दुर्योधन को उसकी जंघा से पकड़कर उसके दो फाड़ कर दिया और इस तरह दुर्योधन मारा गया।

अर्जुन : इनके धर्मपिता पांडु थे, लेकिन असल में वे इन्द्र-कुंती के पुत्र थे। देवराज इन्द्र ने अर्जुन को बचाने के लिए कर्ण के कवच और कुंडल उनसे छल द्वारा छीन लिए थे। देवराज इन्द्र एक ब्राह्मण के वेश में पहुंच गए कर्ण के द्वार और उनसे दान मांग लिया।

भीम : भीम को पवनपुत्र कहा जाता है। हनुमानजी भी पवनपुत्र ही थे। कहते हैं कि भीम में 10 हजार हाथियों का बल था। भीम ने बलराम से गदा युद्ध सीखा था। भीम ने ही दुर्योधन और दुःशासन सहित गांधारी के 100 पुत्रों को मारा था। द्रौपदी के अलावा भीम की पत्नी का नाम हिडिंबा था जिससे भीम का परमवीर पुत्र घटोत्कच पैदा हुआ था। घटोत्कच ने ही इन्द्र द्वारा कर्ण को दी गई अमोघ शक्ति को अपने ऊपर चलवाकर अर्जुन के प्राणों की रक्षा की थी।

युधिष्ठिर : युधिष्ठिर धर्मराज-कुंती के पुत्र थे। युधिष्ठिर के धर्मपिता पांडु थे और वे 5 पांडवों में से सबसे बड़े भाई थे। वे सत्यवादिता एवं धार्मिक आचरण के लिए विख्यात थे। अनेकानेक धर्म संबंधी प्रश्न एवं उनके उत्तर युधिष्ठिर के मुख से महाभारत में कहलाए गए हैं। उनके पिता धर्मराज ने यक्ष बनकर सरोवर पर उनकी परीक्षा भी ली थी। द्रौपदी के अलावा उनकी देविका नामक एक और पत्नी थी। द्रौपदी से प्रतिविंध्य और देविका से धौधेय नामक उनके 2 पुत्र थे। ये सशरीर स्वर्गारोहण कर गए थे।

नकुल व सहदेव : ये 33 देवताओं में से 2 अश्विनीकुमारों के अंश से उत्पन्न हुए थे। ये 2 अश्‍विनी कुमार थे- 1. नासत्य और 2. दस्त्र। सहदेव त्रिकालदर्शी था। उसने महाभारत युद्ध के होने और इसके परिणाम की घटनाओं को पहले से ही जान लिया था लेकिन श्रीकृष्ण ने उसे इस घटना को किसी को भी बताने से इंकार कर दिया था।

कृपाचार्य : रुद्र के एक गण ने कृपाचार्य के रूप में अवतार लिया।
शकुनि : द्वापर युग के अंश से शकुनि का जन्म हुआ।

धृतराष्ट्र और पांडु : अरिष्टा के पुत्र हंस नामक गंधर्व धृतराष्ट्र तथा उसका छोटा भाई पाण्डु के रूप में जन्मे।

विदुर : सूर्य के अंश धर्म ही विदुर के नाम से प्रसिद्ध हुए।

कुंती-माद्री : कुंती और माद्री के रूप में सिद्धि और धृतिका का जन्म हुआ था।

गांधारी : मति का जन्म राजा सुबल की पुत्री गांधारी के रूप में हुआ था।

रुक्मणी-द्रौपदी : राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मणी के रूप में लक्ष्मीजी व द्रौपदी के रूप में इंद्राणी उत्पन्न हुई थीं।

अभिमन्यु चंद्रमा के पुत्र वर्चा का अंश था। मरुतगण के अंश से सात्यकि, द्रुपद, कृतवर्मा व विराट का जन्म हुआ था। अग्नि के अंश से धृष्टधुम्न व राक्षस के अंश से शिखंडी का जन्म हुआ था।

विश्वदेवगण द्रौपदी के पांचों पुत्र प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ति, शतानीक और श्रुतसेव के रूप में पैदा हुए थे।

दानवराज विप्रचित्ति जरासंध व हिरण्यकशिपु शिशुपाल का अंश था।

कालनेमि दैत्य ने ही कंस का रूप धारण किया था।

इंद्र की आज्ञानुसार अप्सराओं के अंश से 16 हजार स्त्रियां उत्पन्न हुई थीं।

भविष्‍य की परतों को खोलती कृष्णमूर्ति पद्धति

By flipkart   Posted at  22:51   ASTROLOGY No comments


कृष्णमूर्ति पद्धति की सबसे बड़ी ख़ासियत है इसका सटीक फलकथन। इस पद्धति के आधार पर निश्चित तौर पर यह बताया जा सकता है कि कोई घटना ठीक कितने बजे घटित होगी, यहाँ तक कि उसके घटित होने के समय का ब्यौरा सटीकता से सेकेण्डों में भी बताना संभव है। उदाहरण के लिए कृष्णमूर्ति पद्धति यह बताने में सक्षम है कि कोई हवाई जहाज़ हवाई-पट्टी पर कब उतरेगा, बिजली कितने बजकर कितने मिनट पर आएगी और कोई खोई हुई वस्तु कब मिलेगी। केपी के आश्चर्यजनक फलकथन इस पद्धति को ज्योतिष की दुनिया में न सिर्फ़ एक विशेष स्थान दिलाते हैं, बल्कि स्वयं ज्योतिष को एक ठोस वैज्ञानिक आधार भी मुहैया कराते हैं।

कृष्‍णमूर्ति पद्धति को संक्षेप में “केपी” भी कहते हैं। इस प‍द्धति की खोज या आविष्कार का श्रेय दक्षिण भारत के श्री के. एस. कृष्‍णमूर्ति को जाता है। उन्‍होंने पारम्‍परिक और विदेशी अनेक ज्‍योतिष की शाखाओं का अध्‍ययन किया और पाया की वे बहुत ही भ्रमित करने वाली और मुश्‍किल हैं। पुराने लेखकों की बातों में भी काफ़ी मतभेद हैं। लाखों या करोड़ों की संख्‍या में लिखे गए श्लोकों को याद रखना सामान्‍य व्‍यक्ति के लिए बड़ा मुश्‍किल है। सबसे मुख्‍य बात यह है कि दो अलग-अलग ज्‍योतिषियों के पास जाएँ तो वे दो अलग-अलग और परस्‍पर विरोधी बातें बता देते हैं। इन सभी वजहों से ज्‍योतिषी सही भविष्‍यवाणी नहीं कर पाते, जनता भ्रमित होती है और अन्त में ज्‍योतिष का नाम भी बदनाम होता है।

जिस तरह बारह राशियाँ और सत्ताईस नक्षत्र होते हैं, उसी तरह केपी में हर नक्षत्र के भी नौ विभाजन किए जाते हैं जिसे उप-नक्षत्र या “सब” कहते हैं। कुल मिलाकर 249 उपनक्षत्र होते हैं, जो ज्‍योतिष फलकथन की सूक्ष्‍मता में वृद्धि करते हैं। उप-नक्षत्र की वजह से ही केपी में दिन की ही नहीं, बल्कि घण्टे, मिनट और सेकन्‍ड की सूक्ष्‍मता से भी भविष्‍यवाणी की जा सकती है।

केपी में प्रश्न ज्‍योतिष पर विस्‍तार से चर्चा की गई है। अगर किसी व्‍यक्ति को अपना जन्‍म-दिन और जन्‍म-समय नहीं पता, तो उसका जन्‍म समय न सिर्फ निकाला जा सकता है परन्‍तु बिना जन्‍म-समय आदि के भी उस व्‍यक्ति के प्रश्न का उत्तर दिया जा सकता है।

इस व्रत को करने से होती है मनचाही संतान प्राप्ति

By flipkart   Posted at  02:20   ASTROLOGY No comments


1 दंपति को गुरुवार का व्रत रखना चाहिए।

2 गुरुवार के दिन पीले वस्त्र धारण करें,पीली वस्तुओं का दान करें यथासंभवपीला भोजन ही करें।

3 माता बनने की इच्छुक महिला को चाहिए गुरुवार के दिनगेंहू के आटे की 2 मोटी लोई बनाकर उसमेंभीगी चने की दाल औरथोड़ी सी हल्दी मिलाकरनियमपूर्वक गाय को खिलाएं।

4 शुक्ल पक्ष में बरगद के पत्ते को धोकर साफ करके उस परकुंकुम से स्वस्तिक बनाकर उस पर थोड़े से चावल और एकसुपारी रखकर सूर्यास्त से पहलेकिसी मंदिर में अर्पित कर दें और प्रभु से संतानका वरदान देने के लिए प्रार्थना करें निश्चय ही संतानकी प्राप्ति होगी ।

5 गुरुवार के दिन पीले धागे मेंपीली कौड़ी को कमर में बांधने सेसंतान प्राप्ति का प्रबल योग बनता है।

6 माता बनने की इच्छुक महिला को पारद शिवलिंगका रोजाना दूध से अभिषेक करें उत्तम संतान की प्राप्ति होगी ।

7 हर गुरुवार को भिखारियों को गुड़ का दान देने सेभी संतान सुख प्राप्त होता है ।

8 रविवार को छोड़कर अन्य सभी दिन निसंतान स्त्री यदि पीपल पर दीपक जलाए और उसकी परिक्रमा करते हुए संतान की प्रार्थना करें उसकी इच्छा अति शीघ्र पूरी होगी ।



कहीं आपके साथ भी तो ऐसा नही हो रहा ?

By flipkart   Posted at  02:09   ASTROLOGY No comments


कहीं आपके साथ भी तो ऐसा नही हो रहा ?

यदि जीवन में निरंतर समस्याए आ रही है। और यह प्रतीत हो की जीवन में कही कुछ सही नही हो रहा तो निश्चित रूप से हो सकता है आप पैरानार्म्ल समस्याओं से ग्रस्त है। आपके आस पास नेगेटिव एनर्जी है। यदि ऐसा है तो कुछ पहलुओ पर जरुर गौर करे।

1) पूर्णिमा या अमावस्या में घर के किसी सदस्य का Depression या Aggression काफी बढ़ जाना या स्वास्थ्य संबंधी समस्याओ का बढ़ जाना।
2) बृहस्पतिवार, शुक्रवार या शनिवार में से किसी एक दिन प्रत्येक सप्ताह कुछ ना कुछ नकारात्मक घटनाएं घटना।
3) किसी ख़ास रंग के कपडे पहनने पर कुछ समस्याए या स्वास्थ्य पर असर जरुर होना।
4) घर में किसी एक सदस्य द्वारा दुसरे सदस्य को देखते ही अचानक से क्रोधित हो जाना।
5) पुरे मोहल्ले में सिर्फ आपके घर के आस पास कुत्तों का इकट्ठा होना।
6) घर में किसी महिला को हर माह अमावस्या में Period होना।
7) घर में किसी ना किसी सदस्य को अक्सर चोट चपेट लगना।
8) वैवाहिक संबंधो में स्थिरता का ना होना।
9) घर में किसी सदस्य का उन्मादी या नशे में होना।
10) सोते समय दबाव या स्लीपिंग पैरालाइसेस महसूस करना।
11) डरावने स्वप्न देखना।
12) स्वप्न में किसी के डर से खुद को भागते हुए देखना।
13) स्वप्न में अक्सर साँप या कुत्ते को देखना।
14) स्वप्न में खुद को सीढ़ी से नीचे उतरते देखना और आख़िरी सीढ़ी का गायब होना।
15) किसी प्रकार के गंध का अहसास होना।
16) पानी से और ऊँचाई से डर लगना।
17) सोते वक्त अचानक से कुछ अनजान चेहरों का दिखना।
18) अनायास हाथ पाँव का कांपना।
19) अक्सर खुद के मृत्यु की कल्पना करना।
20) व्यापार में अचानक उतार चढ़ाव का होना।
ये मुख्य ल्क्ष्ण है, जिनसे आप खुद जान सकते है की आपको या आपके घर में किसी प्रकार की पैरानार्म्ल प्राब्लम तो नही।

कुंडली बताती है कि क्या रत्न पहने और क्या ना पहने

By flipkart   Posted at  01:50   ASTROLOGY No comments


कुंडली बताती है कि क्या रत्न पहने और क्या ना पहने
रत्न सबके लिए नहीं होते, वे सुंदरता की वस्तु न होकर प्राणवान ऊर्जा के स्रोत के रूप में कार्य करते हैं। शुभ रत्नों का चयन करने के लिए अपने जन्म कुंडली में शुभ ग्रहों और लग्न की राशि के अनुसार करना चाहिए, अन्यथा प्रतिकूल रत्न लाभ के बजाय हानि भी कर सकता है। कई रत्न बड़े प्रभावशाली होते हैं और वे अपना प्रभाव तुरंत दिखाते है। रत्न पहनने के लिए दशा-महादशाओं का अध्ययन भी जरूरी है। केंद्र या त्रिकोण के स्वामी की ग्रह महादशा में उस ग्रह का रत्न पहनने से अधिक लाभ मिलता है।

जन्म कुंडली में त्रिकोण सदैव शुभ होता है इसलिए लग्नेश, पंचमेश व नवमेश का रत्न धारण किया जा सकता है। यदि इन तीनों में कोई ग्रह अपनी उच्च राशि या स्वराशि में हो तो रत्न धारण नहीं करना चाहिए। यदि शुभ ग्रह अस्त या निर्बल हो तो उसका रत्न पहनें ताकि उस ग्रह के प्रभाव को बढ़ाकर शुभ फल दे। यदि लग्न कमजोर है या लग्नेश अस्त है तो लग्नेश का रत्न पहनें। यदि भाग्येश निर्बल या अस्त है तो भाग्येश का रत्न पहनें। लग्नेश का रत्न जीवन-रत्न, पंचमेश का कारक-रत्न और नवमेश का भाग्य-रत्न कहलाता है। त्रिकोण का स्वामी यदि नीच का है, तो वह रत्न न पहने। कभी भी मारक, बाधक, नीच या अशुभ ग्रह का रत्न न पहनें। सभी रत्न शुक्ल पक्ष में निर्धारित वार व होरा में धारण किए जाने चाहिए।

जन्म लग्न के अनुसार करे रत्नों का चयन :-

मेष: इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न मूंगा है जिसको शुक्ल पक्ष में किसी मंगलवार को मंगल की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर सोने में अनामिका अंगुली में धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ भौं भौमाय नमः लाभ- मूंगा धारण करने से रक्त साफ होता है और रक्त, साहस और बल में वृद्धि होती है, महिलाओं के शीघ्र विवाह मंे सहयोग करता है, प्रेत बाधा से मुक्ति दिलाता है। बच्चों में नजर दोष दूर करता है। वृश्चिक लग्न वाले भी इसे धारण कर सकते हैं।

वृष: इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न हीरा तथा राजयोग कारक रत्न नीलम है। हीरा को शुक्ल पक्ष में किसी शुक्रवार को शुक्र की होरा में जाग्रत कर धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ शुं शुक्राय नमः लाभ- हीरा धारण करने से स्वास्थ्य व साहस प्रदान करता है। समझदार बनाता है। शीघ्र विवाह कराता है। अग्नि भय व चोरी से बचाता है। महिलाओं में गर्भाशय के रोग दूर करता है। पुरुषों में वीर्य दोष मिटाता है। कहा गया है कि पुत्र की कामना रखने वाली महिला को हीरा धारण नहीं करना चाहिए अतः वे महिलाएं जो पुत्र संतान चाहती हैं या जिनके पुत्र संतान है उन्हें परीक्षणोपरांत ही हीरा धारण करना चाहिए। इसे तुला लग्न वाले जातक भी धारण कर सकते हैं।

मिथुन: इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न पन्ना है जिसे बुधवार को बुध की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर पहनना चाहिए। मंत्र- ऊँ बुं बुधाय नमः लाभ- पन्ना निर्धनता दूर कर शांति प्रदान करता है। परीक्षाओं में सफलता दिलाता है। खांसी व अन्य गले संबंधी बीमारियों को दूर करता है।इसके धारण करने से एकाग्रता विकसित होती है। काम, क्रोध आदि मानसिक विकारों को दूर करके अत्यंत शांति दिलाता है। कन्या लग्न वाले जातक भी इसे धारण कर सकते हैं।

कर्क: इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न मोती है जिसे सोमवार के दिन प्रातः चंद्र की होरा में पहनना चाहिए। पहनने के पहले रत्न को इस मंत्र से अवश्य जाग्रत कर लेना चाहिए। मंत्र- ऊँ सों सोमाय नमः लाभ- मोती धारण करने से स्मरण शक्ति प्रखर होती है। बल, विद्या व बुद्धि में वृद्धि होती है। क्रोध व मानसिक तनाव शांत होता है। अनिद्रा, दांत व मूत्र रोग में लाभ होता है। पुरुषों का विवाह शीध्र कराता है तथा महिलाओं को सुमंगली बनाता है। इस लग्न वाले यदि मूंगा भी धारण करें तो अत्यंत लाभ देता है क्योंकि मूंगा इस लग्न वाले व्यक्ति का राजयोग कारक रत्न होता है।

सिंह: इस लग्न वाले जातकांे का अनुकूल रत्न माणिक्य है। इसे रविवार को प्रातः रवि की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ घृणि सूर्याय नमः लाभ- माणिक्य धारण करने से साहस में वृद्धि होती है। भय, दुःख व अन्य व्याधियों का नाश होता है। नौकरी में उच्चपद व प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। अस्थि विकार व सिर दर्द की समस्या से निजात मिलती है। इस लग्न वाले व्यक्ति यदि मूंगा भी धारण करें तो अत्यंत लाभ देता है। क्योंकि इस लग्न वाले व्यक्ति का मूंगा राजयोग कारक रत्न होता है।

कन्या :- इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न पन्ना है जिसे बुधवार को बुध की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर पहनना चाहिए। मंत्र- ऊँ बुं बुधाय नमः , इस लग्न के लिए पन्ना , हीरा . नीलम रत्न शुभ होता है

तुला :- इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न हीरा तथा राजयोग कारक रत्न नीलम है। हीरा को शुक्ल पक्ष में किसी शुक्रवार को शुक्र की होरा में जाग्रत कर धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ शुं शुक्राय नमः, हीरा , ओपेल

वृश्चिक :- इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न मूंगा है जिसको शुक्ल पक्ष में किसी मंगलवार को मंगल की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर सोने में अनामिका अंगुली में धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ भौं भौमाय नमः

धनु: इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न पुखराज है जिसे शुक्ल पक्ष के किसी गुरुवार को प्रातः गुरु की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ बृं बृहस्पतये नमः लाभ: पुखराज धारण करने से बल, बुद्धि, ज्ञान, यज्ञ व मान-सम्मान में वृद्धि होती है। पुत्र संतान देता है। पापकर्म करने से बचाता है। अजीर्ण प्रदर, कैंसर व चर्मरोग से मुक्ति दिलाता है।

मकर :-इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न नीलम है जिसे शनिवार के दिन प्रातः शनि की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ शं शनैश्चराये नमः लाभ- नीलम धारण करने से धन, सुख व प्रसिद्धि में वृद्धि करता है। मन में सद्विचार लाता है। संतान सुख प्रदान करता है। वायु रोग, गठिया व हर्निया जैसे रोग में लाभ देता है। नीलम को धारण करने के पूर्व परीक्षण अवश्य करना चाहिए।
नीलम धारण करने से पूर्व कुशल ज्योतिषाचार्य से सलाह अवश्य ले लेनी चाहिए।

कुम्भ :- -इस लग्न वाले जातकों के लिए अनुकूल रत्न नीलम है जिसे शनिवार के दिन प्रातः शनि की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ शं शनैश्चराये नमः लाभ- नीलम धारण करने से धन, सुख व प्रसिद्धि में वृद्धि करता है।

मीन :- इस लग्न वाले जातकों का अनुकूल रत्न पुखराज है जिसे शुक्ल पक्ष के किसी गुरुवार को प्रातः गुरु की होरा में निम्न मंत्र से जाग्रत कर धारण करना चाहिए। मंत्र- ऊँ बृं बृहस्पतये नमः
मिथुन, कन्या, वृश्चिक, धनु, कुंभ व मीन लग्न वाले जातक पुखराज धारण कर सकते हैं। वृष, कर्क, सिंह, तुला और मकर लग्न वाले जातक पुखराज धारण न ही करें तो अच्छा है।

रावण सहिंता के ये उपाय चमका देंगे आपकी किस्मत को

By flipkart   Posted at  01:44   ASTROLOGY No comments


बहुत कम लोग जानते हैं।  रावण सभी शास्त्रों का जानकार और श्रेष्ठ विद्वान था। रावण ने भी ज्योतिष और तंत्र शास्त्र की रचना की है। दशानन ने ऐसे कई उपाय बताए हैं जिनसे किसी भी व्यक्ति की किस्मत रातोंरात बदल सकती है।यहां जानिए रावण संहिता के अनुसार कुछ ऐसे तांत्रिक उपाय जिनसे किसी भी व्यक्ति की किस्मत चमक सकती है...

1. धन प्राप्ति का उपाय: किसी भी शुभ मुहूर्त में या किसी शुभ दिन में सुबह जल्दी उठें। इसके बाद नित्यकर्मों से निवृत्त होकर किसी पवित्र नदी या जलाशय के किनारे जाएं। किसी शांत एवं एकांत स्थान पर वट वृक्ष के नीचे चमड़े का आसन बिछाएं। आसन पर बैठकर धन प्राप्ति मंत्र का जप करें।

धन प्राप्ति का मंत्र: ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं नम: ध्व: ध्व: स्वाहा।
इस मंत्र का जप आपको 21 दिनों तक करना चाहिए। मंत्र जप के लिए रुद्राक्ष की माला का उपयोग करें। 21 दिनों में अधिक से अधिक संख्या में मंत्र जप करें।
जैसे ही यह मंत्र सिद्ध हो जाएगा आपको अचानक धन  प्राप्ति अवश्य कराएगा।

2.यदि किसी व्यक्ति को धन प्राप्त करने में बार-बार रुकावटें आ रही हों तो उसे यह उपाय करना चाहिए।

यह उपाय 40 दिनों तक किया जाना चाहिए। इसे अपने घर पर ही किया जा सकता है। उपाय के अनुसार धन प्राप्ति मंत्र का जप करना है। प्रतिदिन 108 बार।
मंत्र: ऊँ सरस्वती ईश्वरी भगवती माता क्रां क्लीं, श्रीं श्रीं मम धनं देहि फट् स्वाहा।
इस मंत्र का जप नियमित रूप से करने पर कुछ ही दिनों महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो जाएगी और आपके धन में आ रही रुकावटें दूर होने लगेंगी।

3. यदि आप दसों दिशाओं से यानी चारों तरफ से पैसा प्राप्त करना चाहते हैं तो यह उपाय करें। यह उपाय दीपावली के दिन किया जाना चाहिए।

दीपावली की रात में विधि-विधान से महालक्ष्मी का पूजन करें। पूजन के सो जाएं और सुबह जल्दी उठें। नींद से जागने के बाद पलंग से उतरे नहीं बल्कि यहां दिए गए मंत्र का जप 108 बार करें।
मंत्र: ऊँ नमो भगवती पद्म पदमावी ऊँ ह्रीं ऊँ ऊँ पूर्वाय दक्षिणाय उत्तराय आष पूरय सर्वजन वश्य कुरु कुरु स्वाहा।
शय्या पर मंत्र जप करने के बाद दसों दिशाओं में दस-दस बार फूंक मारें। इस उपाय से साधक को चारों तरफ से पैसा प्राप्त होता है

4.सफेद आंकड़े को छाया में सुखा लें। इसके बाद कपिला गाय यानी सफेद गाय के दूध में मिलाकर इसे पीस लें और इसका तिलक लगाएं। ऐसा करने पर व्यक्ति का समाज में वर्चस्व हो जाता है।

5.शास्त्रों के अनुसार दूर्वा घास चमत्कारी होती है। इसका प्रयोग कई प्रकार के उपायों में भी किया जाता है।

यदि कोई व्यक्ति सफेद दूर्वा को कपिला गाय यानी सफेद गाय के दूध के साथ पीस लें और इसका तिलक लगाएं तो वह किसी भी काम में असफल नहीं होता है।

6.महालक्ष्मी की कृपा तुरंत प्राप्त करने के लिए यह तांत्रिक उपाय करें। किसी शुभ मुहूर्त जैसे दीपावली, अक्षय तृतीया, होली आदि की रात यह उपाय किया जाना चाहिए। दीपावली की रात में यह उपाय श्रेष्ठ फल देता है। इस उपाय के अनुसार आपको दीपावली की रात कुमकुम या अष्टगंध से थाली पर यहां दिया गया मंत्र लिखें।

मंत्र: ऊँ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्मी, महासरस्वती ममगृहे आगच्छ-आगच्छ ह्रीं नम:।
इस मंत्र का जप भी करना चाहिए। किसी साफ एवं स्वच्छ आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला या कमल गट्टे की माला के साथ मंत्र जप करें। मंत्र जप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए। अधिक से अधिक इस मंत्र की आपकी श्रद्धानुसार बढ़ा सकते हैं।
इस उपाय से आपके घर में महालक्ष्मी की कृपा बरसने लगेगी।

7.अपामार्ग के बीज को बकरी के दूध में मिलाकर पीस लें, लेप बना लें। इस लेप को लगाने से व्यक्ति का समाज में आकर्षण काफी बढ़ जाता है। सभी लोग इनके कहे को मानते हैं।

8.यदि आप देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर की कृपा से अकूत धन संपत्ति चाहते हैं तो यह उपाय करें।

उपाय के अनुसार आपको यहां दिए जा रहे मंत्र का जप तीन माह तक करना है। प्रतिदिन मंत्र का जप केवल 108 बार करें।

मंत्र: ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवाणाय, धन धन्याधिपतये धन धान्य समृद्धि मे देहि दापय स्वाहा।
मंत्र जप करते समय अपने पास धनलक्ष्मी कौड़ी रखें। जब तीन माह हो जाएं तो यह कौड़ी अपनी तिजोरी में या जहां आप पैसा रखते हैं वहां रखें। इस उपाय से जीवनभर आपको पैसों की कमी नहीं होगी।

9.यदि आप घर या समाज या ऑफिस में लोगों को आकर्षित करना चाहते हैं तो बिल्वपत्र तथा बिजौरा नींबू लेकर उसे बकरी के दूध में मिलाकर पीस लें। इसके बाद इससे तिलक लगाएं। ऐसा करने पर व्यक्ति का आकर्षण बढ़ता है।

Tuesday, 5 May 2015

कैसे कर सकते है ओरिजिनल रुद्राक्ष की पहचान

By flipkart   Posted at  03:37   ASTROLOGY No comments

रूद्राक्ष को शिव की आंख कहा जाता है। रूद्राक्ष पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक फल है। मुख्यतः यह पेड़ नेपाल, इंडोनेशिया और भारत में पाया जाता है। इस पेड़ पर छोटे व मजबूत फल लगते हैं जिनका आवरण उतारने पर अंदर से मजबूत गुठली वाला फल मिलता है जिसे रूद्राक्ष कहते हैं।

रूद्राक्ष का धार्मिक महत्व होने के साथ ही इसका प्रयोग आयुर्वेदिक दवाईयों में भी होता है। इसमें इतने चुंबकीय गुण होते हैं कि असली रूद्राक्ष की माला पहनने पर ब्लड प्रेशर और हृदय रोगों में भी लाभ होता है।

असली और पके हुए रूद्राक्ष में विद्युत शक्ति होती है तथा शरीर के साथ रगड़ खाने पर इसमें से निकलने वाली उर्जा मनुष्य को शारीरिक व मानसिक से लाभ देता है। यहां तक की चील जैसे विभिन्न पक्षी पके हुए रूद्राक्ष को अपने घोंसले में रखते हैं।

रूद्राक्ष के बीचों-बीच एक सिरे से दूसरे सिरे तक एक रेखा होती है जिसे मुख कहा जाता है। रूद्राक्ष में यह रेखाएं या मुख एक से 14 मुखी तक होते हैं और कभी-कभी 15 से 21 मुखी तक के रूद्राक्ष भी देखे गए हैं। आधी या टूटी हुई लाईन को मुख नहीं माना जाता है। जितनी लाईनें पूरी तरह स्पष्ट हों उतने ही मुख माने जाते हैं।

एक मुखी- सूर्य, दो मुखी-चंद्र, तीन मुखी-मंगल, चार मुखी-बुध, पांच मुखी-गुरू, छः मुखी-शुक्र, सात मुखी-शनि, आठ मुखी-राहू, नौ मुखी-केतू, 10मुखी-भगवान महावीर, 11मुखी-इंद्र, 12मुखी-भगवान विष्णु, 13मुखी- इंद्र, 14मुखी- शनि, गौरी शंकर और गणेश रूद्राक्ष पाए जाते हैं। 

रूद्राक्ष किसी फैक्टरी में तैयार नहीं किया जाता। यह एक फल है जो पेड़ पर उगता है। इसलिए रूद्राक्ष नकली नहीं हो सकता भले ही कच्चा हो। पांच मुखी रूद्राक्ष बहुतायत में उगते हैं इस कारण यह सस्ते मिलते हैं लेकिन रूद्राक्ष की कुछ किस्में कम मिलती हैं इसी कारण इनका मूल्य काफी अधिक होता है।

समस्या तब शुरू होती है जब नकली रूद्राक्ष बाजार में मिलने लगते। बड़े बड़े स्थानों पर इस तरह का कारोबार हो रहा है जिस पर रोक लगाने के लिए किसी भी तरह की व्यवस्था नहीं है। पारखी व्यक्ति तो इसकी पहचान कर लेता है लेकिन आम आदमी हजारों रूपये लगाकर भी नुकसान में ही रहता है। अब आपको बताते हैं की किस तरह नकली रूद्राक्ष बनाया जाता है और असली रूद्राक्ष की पहचान की जाती है।

1) प्रायः पानी में डूबने वाला रूद्राक्ष असली और जो पानी पर तैर जाए उसे नकली माना जाता है। लेकिन यह सच नहीं है। पका हुआ रूद्राक्ष पानी में डूब जाता है जबकी कच्चा रूद्राक्ष पानी पर तैर जाता है। इसलिए इस प्रक्रिया से रूद्राक्ष के पके या कच्चे होने का पता तो लग सकता है, असली या नकली होने का नहीं।

2) प्रायः गहरे रंग के रूद्राक्ष को अच्छा माना जाता है और हल्के रंग वाले को नहीं। असलियत में रूद्राक्ष का छिलका उतारने के बाद उसपर रंग चढ़ाया जाता है। बाजार में मिलने वाली रूद्राक्ष की मालाओं को पिरोने के बाद पीले रंग से रंगा जाता है। रंग कम होने से कभी-कभी हल्का रह जाता है। काले और गहरे भूरे रंग के दिखने वाले रूद्राक्ष प्रायः इस्तेमाल किए हुए होते हैं, ऐसा रूद्राक्ष के तेल या पसीने के
संपर्क में आने से होता है।

3) कुछ रूद्राक्षों में प्राकृतिक रूप से छेद होता है ऐसे रूद्राक्ष बहुत शुभ माने जाते हैं। जबकि ज्यादातर रूद्राक्षों में छेद करना पड़ता है।

4) दो अंगूठों या दो तांबे के सिक्कों के बीच घूमने वाला रूद्राक्ष असली है यह भी एक भ्रांति ही है। इस तरह रखी गई वस्तु किसी दिशा में तो घूमेगी ही। यह उस पर दिए जाने दबाव पर निर्भर करता है।

5) रूद्राक्ष की पहचान के लिए उसे सुई से कुरेदें। अगर रेशा निकले तो असली और न निकले तो नकली होगा।

6) नकली रूद्राक्ष के उपर उभरे पठार एकरूप हों तो वह नकली रूद्राक्ष है। असली रूद्राक्ष की उपरी सतह कभी भी एकरूप नहीं होगी। जिस तरह दो मनुष्यों के फिंगरप्रिंट एक जैसे नहीं होते उसी तरह दो रूद्राक्षों के उपरी पठार समान नहीं होते। हां नकली रूद्राक्षों में कितनों के ही उपरी पठार समान हो सकते हैं।

7) कुछ रूद्राक्षों पर शिवलिंग, त्रिशूल या सांप आदी बने होते हैं। यह प्राकृतिक रूप से नहीं बने होते बल्कि कुशल कारीगरी का नमूना होते हैं। रूद्राक्ष को पीसकर उसके बुरादे से यह आकृतियां बनाई जाती हैं। इनकी पहचान का तरीका आगे लिखूंगा।

8) कभी-कभी दो या तीन रूद्राक्ष प्राकृतिक रूप से जुड़े होते हैं। इन्हें गौरी शंकर या गौरी पाठ रूद्राक्ष कहते हैं। इनका मूल्य काफी अधिक होता है इस कारण इनके नकली होने की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाती है। कुशल कारीगर दो या अधिक रूद्राक्षों को मसाले से चिपकाकर इन्हें बना देते हैं।

9) प्रायः पांच मुखी रूद्राक्ष के चार मुंहों को मसाला से बंद कर एक मुखी कह कर बेचा जाता है जिससे इनकी कीमत बहुत बढ़ जाती है। ध्यान से देखने पर मसाला भरा हुआ दिखायी दे जाता है।

10) कभी-कभी पांच मुखी रूद्राक्ष को कुशल कारीगर और धारियां बना अधिक मुख का बना देते हैं। जिससे इनका मूल्य बढ़ जाता है। प्राकृतिक तौर पर बनी धारियों या मुख के पास के पठार उभरे हुए होते हैं जबकी मानव निर्मित पठार सपाट होते हैं। ध्यान से देखने पर इस बात का पता चल जाता है।
इसी के साथ मानव निर्मित मुख एकदम सीधे होते हैं जबकि प्राकृतिक रूप से बने मुख पूरी तरह से सीधे नहीं होते।

11) प्रायः बेर की गुठली पर रंग चढ़ाकर उन्हें असली रूद्राक्ष कहकर बेच दिया जाता है। रूद्राक्ष की मालाओं में बेर की गुठली का ही उपयोग किया जाता है।

12) रूद्राक्ष की पहचान का तरीका- एक कटोरे में पानी उबालें। इस उबलते पानी में एक-दो मिनट के लिए रूद्राक्ष डाल दें। कटोरे को चूल्हे से उतारकर ढक दें। दो चार मिनट बाद ढक्कन हटा कर रूद्राक्ष निकालकर ध्यान से देखें। यदि रूद्राक्ष में जोड़ लगाया होगा तो वह फट जाएगा। दो रूद्राक्षों को चिपकाकर गौरीशंकर रूद्राक्ष बनाया होगा या शिवलिंग, सांप आदी चिपकाए होंगे तो वह अलग हो जाएंगे।

जिन रूद्राक्षों में सोल्यूशन भरकर उनके मुख बंद करे होंगे तो उनके मुंह खुल जाएंगे। यदि रूद्राक्ष प्राकृतिक तौर पर फटा होगा तो थोड़ा और फट जाएगा। बेर की गुठली होगी तो नर्म पड़ जाएगी, जबकि असली रूद्राक्ष में अधिक अंतर नहीं पड़ेगा।

यदि रूद्राक्ष पर से रंग उतारना हो तो उसे नमक मिले पानी में डालकर गर्म करें उसका रंग हल्का पड़ जाएगा। वैसे रंग करने से रूद्राक्ष को नुकसान नहीं होता है।

वास्तुदोष को दूर करने के लिए घर में स्वस्तिक क्यों जरुरी है !

By flipkart   Posted at  03:23   ASTROLOGY No comments




वास्तुदोष को दूर करने के लिए घर में स्वस्तिक क्यों जरुरी है !

पिछली पोस्ट में मांगलिक चिंहों में निहित ऊर्जा संबंधी जानकारी के बाद आप समझ ही गए होंगे की स्वास्तिक में अंर्तनिहित 1,00,0000 बोविस ऊर्जा का लाभ लेने के लिए ही हिंदू धर्म में स्वस्तिक को सर्वमान्य व सर्वप्रयोग्य बनाया गया है। अब बताते हैं कि किस तरह इस ऊर्जा की सहायता से किसी भी तरह के वास्तु दोष से छुटकारा पाया जा सकता है।

प्राचीन काल में जिन वास्तु नियमों का विद्वान कर गए हैं उनका महत्व आज भी कम नहीं हुआ है। परन्तु कई कारणों से इन नियमों को पालन न करने की सूरत में घर में किसी न किसी तरह का वास्तु दोष आ ही जाता है। इन वास्तु दोषों के निवारण के उपाय किसी प्रशिक्षित वास्तु विशेषज्ञ से कराने चाहिए। लेकिन फौरी तौर पर एक स्वस्तिक प्रयोग बता रहें हैं जिससे वास्तु की समस्या का कुछ हद तक निवारण हो सकता है।

वास्तु दोष को दूर करने के लिए बनाया गया स्वस्तिक 6 इंच से कम नहीं होना चाहिए। घर के मुख्य़ द्वार के दोनों ओर जमीन से 4 से 5 फुट ऊपर सिंदूर से यह स्वस्तिक बनाऐं। घर में जहां भी वास्तु दोष है और उसे दूर करना संभव न हो तो वहां पर भी इस तरह का स्वस्तिक बना दें।

जिस भी दिशा की शांति करानी हो उस दिशा में 6"x6" का तांबे का स्वस्तिक यंत्र पूजन कर लगा देना चाहिए। इस यंत्र के साथ उस दिशा स्वामी का रत्न भी यंत्र के साथ लगा दें। नींव पूजन के समय भी इस तरह के यंत्र आठों दिशाओं व ब्रह्म स्थान पर दिशा स्वामियों के रत्न के साथ लगा कर गृहस्वामी के हाथ के बराबर गड्ढा खोद कर, चावल बिछा कर, दबा देना चाहिए। पृथ्वी में इन अभिमंत्रित रत्न जड़े स्वस्तिक यंत्र की स्थापना से इनका प्रभाव काफी बड़े क्षेत्र पर होने लगता है।

दिशा स्वामियों की स्थिति इस प्रकार है- ब्रह्म स्थान-माणिक, पूर्व-हीरा, आग्नेय-मूंगा, दक्षिण-नीलम, नैऋत्य-पुखराज, पश्चिम-पन्ना, वायव्य-गोमेद, उत्तर-मोती, इशान-स्फटिक।

नाड़ी ज्योतिष को ज्योतिष विद्या में रहस्मयी क्यों माना जाता है।

By flipkart   Posted at  03:14   ASTROLOGY No comments

  

नाड़ी ज्योतिष को ज्योतिष विद्या में रहस्मयी क्यों  माना जाता है।


 नाड़ी ज्योतिष को ज्योतिष विद्या में रहस्मयी माना जाता है। इस विधि में जातक के हाथ के अंगूठे की छाप ले कर उस की सहायता से जातक के भूत, भविष्य व वर्तमान के बारे में बताया जाता है। कुछ मामलों में तो जातक का नाम और उसके माता-पिता का नाम, पत्नी का नाम और कई बातें बिल्कुल सटीक बता दिए गए हैं। नाड़ी ज्योतिष के इसी रहस्मय पक्ष पर कुछ प्रकाश डालने का काम करती है। ज्योर्तिविद आरजी राव की रंजन पब्लिकेशन से प्रकाशित पुस्तक भृगु नन्दी नाड़ी।

किताब की शुरूआत में ही लेखक ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उन्होंने दो नाड़ी ग्रंथों नन्दी नाड़ी और भृगु नाड़ी में से कुछ भाग ले कर इस किताब की रचना की है। इस किताब में 500 से अधिक कुंडलियां हैं। कुछ कुंडलियों में केवल भविष्य कथन है और कुछ में भविष्य कथन के कारणों या विधि को भी स्पष्ट किया गया है।

इस किताब में प्रयुक्त नाड़ी ग्रंथों में कुंडलियों के लग्न का उल्लेख नहीं है। कई कुंडलियों में तो चंद्र यहां तक की बुध का भी प्रयोग नहीं किया गया है। इसकी एक वजह यह हो सकती है कि कुंडलियों के साथ दिया गया विश्लेषण एक मोटे तौर पर दिया गया है। और कम शब्दों में कुंडली की व्याख्या के लिए शीघ्रगति की जगह शनि, गुरू जैसे मंदगति ग्रहों को प्राथमिकता दी गई है।

यह किताब वास्तव में कारक ग्रहों के गोचर की सहायता से भविष्यकथन का तरीका बताती है। इसमें कार्य से संबंधित ग्रह को लेकर उससे दूसरे, सातवें और बारहवें भावों का अध्ययन किया गया है। इसके साथ ही ग्रह किस राशी में बैठा है, उस राशी का स्वामी, उस राशी में बैठे अन्य ग्रहों आदी का प्रभाव भी देखा गया है।

इस ग्रंथ का प्रयोग कैसे किया जाए :जब मैं इस किताब को लेकर आया तो शुरूआत करते ही मेरा मन उब गया। इसमें कोई सूत्र नहीं दिए गए हैं। सिर्फ कुछ कुंडलियां और उनका भविष्यकथन, बस। कुछ समय बाद मैंने इस किताब को फिर पढ़ना शुरू किया। इसके बाद इसमें से कुछ सूत्र निकाले हैं। लिख रहा हूं। आप सब भी लगा कर देखिए और बतायें की कितने सटीक बैठे।

गुरू को बच्चों संबंधित कथन, बुध को विद्या संबंधी, शनि को कर्म संबंधी, शुक्र को विवाह संबंधी कारक माना गया है यह तो प्रस्तावना में लेखक ने लिख दिया है। अब कुछ नई बातें बताता हूं।

नाड़ी ज्योतिष गोचर में गुरू का शुक्र पर से गुजरना विवाह और मृत्यु जैसी घटनाऐं लाता है। पत्नी, बहन और भौतिक सुखों का कारक शुक्र को माना है। बड़ा भाई मंगल से, और छोटा भाई बुध से देखने को कहा है। यही नहीं बुध से फाईनेंस को भी देखा गया है।

गुरू के केतू पर तीसरे दफा के गोचर के बाद जातक के जीवन में स्थायित्व आता है। यानी 36 साल की आयु के बाद। गुरू केतू से चौथे भाव में हो तो इस तीसरी बार के गोचर में जातक को ख्याती मिलती है। जब तक शनि मंगल पर से गोचर नहीं कर जाता जातक के जीवन में आराम नहीं आता।

विवाह का समय मंगल के शुक्र पर से गोचर से पता चलता है। अगर मंगल और शुक्र राहू-केतू अक्ष के दोनों ओर हों तो वैवाहिक जीवन में परेशानियां आती हैं। शनि-शुक्र का सम सप्तक होना भी यही प्रभाव पैदा करता है।

शनि व शुक्र के दूसरे में उच्च का बुध हो तो यह अति धनाड्य होने का योग बनाता है।

आपने मेरी बात को इतना समय दिया इसके लिए धन्यवाद।
प्

Saturday, 2 May 2015

यदि सपने में दिखती है खुद की मृत्यु तो जानिए क्या कहता है ज्योतिष

By flipkart   Posted at  04:20   ASTROLOGY No comments


यदि सपने में दिखती है खुद की मृत्यु तो जानिए क्या कहता है ज्योतिष

 हम सभी अक्सर सपने देखते हैं। कुछ तो बेहद अजीबो-गरीब होते हैं। जैसे- खुद को उड़ते देखना, खुद की मृत्यु देखना, सपने में पानी देखना आदि। अधिकांश लोगों की यही राय होती है कि सपनों की दुनिया ऐसी होती है, जहां कुछ भी हो सकता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर सपने का एक विशेष अर्थ होता है, हर सपने में भविष्य का एक संकेत छिपा होता है।

यहां जानिए सर्वाधिक देखे जाने वाले खास सपनों से जुड़ी बातें...

मृत्यु का ख्वाब

कई बार हम अपनी मृत्यु का सपना भी देखते हैं। इसे लेकर चिंतित होने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि यह इशारा है कि अब आप अपनी किसी बुराई को छोड़ कर आगे बढऩे
के लिए तैयार हैं। यदि किसी प्रिय की मृत्यु का सपना देखें, तो समझ जाएं कि जल्द ही उनके जीवन में कुछ नया और अच्छा घटित होने वाला है।

टूट गए दांत

दांतों का सम्बंध हमारे आत्मविश्वास से है। आमतौर पर जो लोग अपनी सुंदरता को लेकर बहुत ज़्यादा सजग होते हैं, उन्हें इस तरह के सपने आते हैं। इसके अलावा यदि आपको महसूस हो कि सामने वाला व्यक्ति आपके बारे में अच्छा नहीं सोच रहा होगा, तब भी ऐसे सपने परेशान कर सकते हैं।

आगे जानिए कुछ और सपने...


ऊंचाई से गिरना

यह सपना जीवन के गलत पथ या असंतुष्टि की भावना की ओर इशारा करता है। सम्भव है कि किसी बात के डर के कारण आपको बार-बार ऐसे सपने आ रहे हों। इस स्थिति में सबसे पहले अपनी परेशानी की वजह ढूंढें, फिर उसका उपाय करें।

कोई पीछा कर रहा है

इसका अर्थ है कि अवचेतन मन इशारा कर रहा है कि आप किसी अहम रिश्ते या स्थिति को नजरअंदाज करने की कोशिश कर रहे हैं, पर उसके ख्याल से उबर भी नहीं पा रहे हैं। ध्यान दें, समस्या से भागने के बजाय उसका सामना करना ही उपाय है।

धोखा खाना अच्छा है!

सपने में स्वयं को धोखा खाता देख समझ लीजिए कि आपकी किसी बड़ी परेशानी का जल्द ही अंत होने वाला है। यह भी सम्भव है कि आपको परेशान करने वाला व्यक्ति आपसे दूर जाने वाला हो।

देर होना या ट्रेन छूटना

कहीं पहुंचने में देर हो जाने का सपना बताता है कि किसी विशेष कार्य को लेकर आप बेहद सजग हैं और उसमें किसी तरह की गड़बड़ हो जाने की आशंका से थोड़े परेशान भी। कई बार देर हो जाने के कारण ट्रेन छूटने का सपना भी दिखता है। यह किसी कार्य की असफलता की ओर इशारा करता है। लेकिन यदि आप सपने में सही समय पर ट्रेन पकड़ लेते हैं, तो समझें कि किसी विशेष कार्य में आप सफलता अर्जित करने वाले है


पानी के मायने

सपने में पानी देखना बहुत आम है। यदि आप ठहरा हुआ पानी जैसे झील या तालाब देखते हैं, तो यह जीवन की एकरसता की ओर इशारा है। वहीं नदी, यानी गतिमान जल देखने का तात्पर्य है कि आपकी जि़ंदगी सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ रही है। सपने में समुद्र दिखाई दे, तो इसका मतलब है आपकी किसी परेशानी का जल्द ही अंत होने वाला है।

झरने में भीगने का दृश्य भी निकट भविष्य के शुभ समाचार का संकेत देता है। गंदे पानी को देखने का अर्थ है कि हम खुद को किसी परिस्थिति या गलत संगत में फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं और जल्द राहत पाना चाहते हैं।

Friday, 1 May 2015

जाने कैसा रहेगा आज आपका दिन दैनिक राशिफल द्वारा

By flipkart   Posted at  23:28   ASTROLOGY No comments


राशि फलादेश
मेष
धन संपत्ति के मामले में सावधानी रखनी होगी। प्रतियोगी, स्थितियों से बचना ही ठीक रहेगा। व्यापार में हानि हो सकती है। यात्रा न करें।


राशि फलादेश
वृष
संतान के संबंध में कुछ शुभ कार्य होने के योग हैं। कार्यक्षेत्र का विस्तार होगा। अधिकारियों का सहयोग मिल सकेगा। आर्थिक स्थिति में सुधार के योग हैं।


राशि फलादेश
मिथुन
अनुचित लाभ के चक्कर में न फँसें। कार्यक्षेत्र में सुधार तथा संतुलन लाने के लिए व्यवस्थाओं में बदलाव कर सकते हैं। वाणी पर नियंत्रण रखें।


राशि फलादेश
कर्क
विरोधी तथा शत्रु आप पर हावी होने का प्रयास करेंगे। व्यापार-व्यवसाय तथा रोजगार के क्षेत्र में चल रही अव्यवस्था में कमी आएगे।


राशि फलादेश
सिंह
निवास स्थान की समस्याओं का समाधान होगा। मांगलिक कार्यों में सक्रियता बढ़ेगी। आय तथा लाभ के नए स्रोत विकसित होंगे।


राशि फलादेश
कन्या
प्रतियोगी स्थितियों से बचकर रहें। कानूनी विवाद आपके हित में निपटेंगे। कोई बड़ा निवेश आज नहीं करें। व्यापार सामान्य रहेगा।


राशि फलादेश
तुला
नए रोजगार के अवसर मिल सकते हैं। स्थायी संपत्ति के विवाद हल होंगे। परिवार के सदस्यों का सहयोग मिल पाएगा। भौतिक सुविधाएं बढ़ेंगी।


राशि फलादेश
वृश्चिक
साझेदारी के कार्यों से लाभ प्राप्ति की संभावना रहेगी। घरेलू मामलों में समस्या एवं मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। दुस्साहस न करें।


राशि फलादेश
धनु
पूंजीगत समस्याओं का समाधान होगा। जीवनसाथी से वैचारिक मतभेद रहेंगे। धर्म-कर्म में धन व्यय होगा। पूंजी के उलझने की संभावना है।


राशि फलादेश
मकर
आर्थिक मामलों में सावधानी रखें। गलतफहमियों तथा शंकाओं को मन में स्थान न दें। व्यावसायिक क्षेत्र में मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।


राशि फलादेश
कुंभ
कामकाज अथवा व्यापार के क्षेत्र में अच्छे परिणाम मिलने के योग बनेंगे। विद्यार्थियों को सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे। जोखिम के कामों से दूर रहे।


राशि फलादेश
मीन
पारिवारिक संपत्ति की प्राप्ति का योग है तथा नव-संपत्ति का लेन-देन भी संभव है। परिवार में किसी से विवाद हो सकता है। अपने काम से काम रखें।

Wednesday, 29 April 2015

जाने कैसा रहेगा आज आपका दिन दैनिक राशिफल द्वारा

By flipkart   Posted at  06:24   ASTROLOGY No comments


दैनिक राशिफल

राशि फलादेश
मेष
संघर्ष के कारण आपका अनुमान ठीक नहीं निकलेगा। सामाजिक कार्यों में सीमित रहें। आर्थिक हानि का योग है। विरोधी नुकसान पहुँचाएंगे।


राशि फलादेश
वृष
किसी विशिष्ट जन का परामर्श वाहन के सुखद योग हैं। परिवार में सौहार्दपूर्ण माहौल रहेगा। दिन पिछले कार्य में प्रगतिकारक योग बनाएगा।


राशि फलादेश
मिथुन
व्यर्थ समय नष्ट न करें। संतुलन की मनःस्थिति आपके पारिवारिक जीवन में सफलता प्रदान करेगी। आलस्य एवं प्रमाद से दूर रहें।


राशि फलादेश
कर्क
व्यापार अच्छा चलेगा। राजकीय क्षेत्र में परिवर्तन से अनुकूलता बनेगी। रचनात्मक कार्यों में व्यस्तता बढ़ेगी। व्यापार अच्छा चलेगा।


राशि फलादेश
सिंह
व्ययकारी योग बनेंगे। आपकी योजना सफल होगी। पारिवारिक सुख-शांति के कारण मन में उत्साह रहेगा। कोर्ट-कचहरी के कार्यों में सफलता मिलेगी।


राशि फलादेश
कन्या
जोखिम के कामों से दूर रहना चाहिए। अध्ययन-अध्यापन में मन लगेगा। आजीविका की ओर विशेष ध्यान दें। व्यापार में उतार-चढ़ाव आएंगे।


राशि फलादेश
तुला
आय-व्यय बराबर रहेंगे। शांति एवं दूरदर्शिता से कार्य करें। परिवार में किसी तनाव की आशंका रहेगी। महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करेंगे।


राशि फलादेश
वृश्चिक
व्यापार में स्थिति उत्साहवर्धक रहेगी। प्रयत्न करने पर रुका पैसा मिल सकता है। व्यर्थ के दिखावे एवं आडंबरों से दूर रहें।


राशि फलादेश
धनु
व्यापार-व्यवसाय मध्यम रहेगा। कार्यों में विलंब व चिंता संभव है। प्रयत्नों का पूरा फल नहीं मिल पाएगा। जीवनसाथी से मतभेद हो सकते हैं।


राशि फलादेश
मकर
अच्छे और उत्साही मित्रों का संसर्ग लाभकारी रहेगा। आर्थिक संपन्नता बढ़ेगी। व्यापार-व्यवसाय अच्छा चलेगा। संतान से मनमुटाव हो सकता है।


राशि फलादेश
कुंभ
योजनाओं में सफलता मिलेगी। अधूरे काम समय से पूरे होने की संभावना है। सामाजिक आयोजनों में सक्रिय भागीदारी रहेगी।


राशि फलादेश
मीन
दूसरों की आलोचना से बचें। लेन-देन के मामलों को प्राथमिकता दें। कार्यक्षेत्र में आशातीत सफलता मिलेगी। कला के प्रति रुझान बढ़ेगा।

Monday, 27 April 2015

सिंहस्थ २०१६ (कुम्भ) महापर्व उज्जैन

By flipkart   Posted at  03:40   ASTROLOGY No comments


 उज्जैन धार्मिक अस्थाओ व परंपरा के सम्मलेन का एक अनूठा शहर जो कि न केवल भारत अपितु समस्त संसार कि धार्मिक अस्थाओ का केंद्र कहा जा सकता है यह वह पवित्र नगरी है जहा ८४ महादेव, सात सागर,९ नारायण ,२ शक्ति पीठो के साथ विश्व मै १२ जोतिलिंगो मै से एक राजाधिराज महाकालेश्वर विराजमान है यह वह पवन नगरी है जिसमें गीता जैसे महान ग्रन्थ के उद्बोधक श्री कृष्ण स्वयं शिक्षा लेने आए अपने पैरों कि धुल से पाषणों को भी जीवटी कर देने वाले प्रभु श्री राम स्वयम अपने पिता तर्पण करने शिप्रा तट पर आए यही वह स्थान है जो कि रामघाट कहलाता है इस प्रकार विश्व के एक मात्र राजा जिसने कि सम्पुर्ण भारत वर्ष के प्रत्यक नागरिक को कर्ज मुख्त कर दिया वह महान शासक विक्रमादित्य उज्जैन कि हि पवन भूमि पर जन्मे | पवन सलिला मुक्तिदायिनी माँ शिप्रा यही पर प्रवाहित होती है एवं विश्व का सबसे बड़ा महापर्व महाकुम्ब /सिंहस्थ मेला विश्व के ४ स्थान मै से एक उज्जैन नगर मै लगता है इस नगरी कि महात्मा वर्णन करना उतना हि कठिन है जितना कि आकाश मै तारा गानों कि गिनती करना जय श्री महाकाल !!!

 सिंहस्थ (कुम्भ) हमारी धार्मिक एवं आध्यात्मिक चेतना का महा पर्व है| सनातन कल से यह संसार का सबसे बढ़ा मेला कहा जा सकता है| पुराणोंमें कुम्भ पर्व मनाये जाने के संभंध में कई कथाएँ है| सबसेप्रामाणिक कथा समुद्र मंथन की है | देव और दानवों ने आपसी सहयोग से रत्नाकर आर्थात समुद्र के गर्भ में छिपी हूई अमूल्य सम्पंदा का दोहन करने का निश्चय किया | मंदराचल पर्वत को मथनी, क्चछप् को आधार एवं वासुकी नाग को मथनी की रस्सी बनाया| उसके मुख की तरफ दानव व पूंछ की तरफ देवतागण उसे पकडकर उत्साह के साथ समुद्र मंथन के कार्य में जुट गए| इन दोनों पक्षों की संगठनात्मक शक्ति के सामने समुद्र को झुखना पढ़ा | उसमे से कुल १४ बहुमूल वस्तुए, जिन्हें रत्न कहा गया, निकली| अंत में अमृत कुम्भ निकला | अमृत कलश को दानवों से बचाने के लिए देवताओं ने इसकी सुरक्षा का दायित्व बृहस्पति,चंद्रमा,सूर्य और शनि को सौप दिया|अमृत कलश प्राप्त हो जाने से चारो और प्रसन्ता का वातावरण छा गया| देवता एवं दानव दोनों अपनी अपनी थकावट भूल गए | देव एवं दानव दोनों पक्ष इस बात में उलझ गए की अमृत कुम्भ- (कलश) का कैसे हरण किया जावे| स्कन्दपुराण के अनुसार इन्द्र ने अपने युवा पुत्र जयंत को कलश लेकर भागने का संकेत दिया| इस चाल को दानव समझ गए| परिमाणस्वरूप देवता व दानवों में भयंकर संग्राम छिड़ गया| यह संग्राम १२ दिन तक चला | देवताओं का एक दिन मनुष्यों के एक वर्ष के बराबर होता है |आर्थात १२ वर्ष तक देव – दानवों का युद्ध चला | इस युद्ध में अमृत कुम्भ की छिना झपटी में मृत्युलोक में अमृत की कुछ बुँदे छलक पड़ी थी


 वे चार स्थान प्रधान तीर्थ हरिद्वार , प्रयाग, नासिक और उज्जैन है, इस संग्राम में दानवों ने इन्द्र पुत्र जयंत से अमृत कलश छुडाने का असंभव प्रयास किया था, किन्तु देवताओं में सूर्य ,गुरु और चंद्र के विशेष प्रयत्न से अमृत कलश सुरक्षित रहा और और भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर दानवों को भ्रमित करके सारा अमृत देवताओं में वितरित कर दिया था | सूर्य , चंद्रएवं गुरु के विशेष सहयोग से अमृत कलश सुरक्षित रहने के कारण इन्ही ग्रहों की विशिष्ट स्थितियों में कुम्भ पर्व मनाने की परम्परा है|

 यह धार्मिक मान्यता है की अमृत कलश से छलकी बूंदों से ये चारो तीर्थ और यहाँ की नदियॉं (गंगा, जमुना, गोदावरी, एवं क्षिप्रा ) अमृतमय हो गई है| अमृत कलश से हरिद्वार ,प्रयाग, नासिक, और उज्जैन में, अमृत बिंदु छलकाने के समय जिन राशियों में सूर्य,चंद्र एवं गुरु की स्थिति उस विशिष्ट योग के अवसर पर रहती है, तभी, वहाँ कुम्भ पूर्व इन राशियों में ग्रहों के योग होने पर ही होते है|

आपकी राशि और भाग्य रत्न..

By flipkart   Posted at  00:44   ASTROLOGY No comments

मेष राशि :-- मेष राशि मंगल की राशि है. मेष राशि का व्यक्ति बुद्धि बल प्राप्त करने आत्मोन्नति, सन्तान सुख, प्रसिद्धि, राज्य कृपा के लिए माणिक्य धारण कर सकता है. सूर्य की महादशा में माणिक्य श्रेष्ठ फलदायक होता है.

वृष राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य नहीं धारण करना चाहिए. क्योंकि यह रत्न वृष राशि के व्यक्ति के लिए सूर्य की महादशा, अंतर्दशा आदि गोचर में अशुभ फल देगा.

मिथुन राशि :-- मिथुन राशि के व्यक्ति को माणिक्य रत्न सिर्फ सूर्य की दशा में ही धारण करना चाहिए वैसे कभी भी धारण नहीं करना चाहिए.

कर्क राशि :- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए. यह धन के अभाव को दूर करने में सहायक होगा. तथा आंखों के कष्ट में भी लाभकारी होगा.

सिंह राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य अवश्य धारण करना चाहिए. शुभ फलदायक होगा. इस राशि वाले को जीवन भर माणिक्य लाभ ही लाभ प्रदान करेगा. इसे धारण करने से शत्रुओ पर विजय भी मिलती है. व मानसिक संतुलन बना रहता है. शारीरिक स्वास्थ तथा आत्मबल मिलता है.

कन्या राशि :-- उस राशि वालो को माणिक्य सदैव हानिकारक व कष्टकारी होगा. भयंकर दुर्घटना व नेत्र विकार से पीड़ित होने की संभावना बनी रहेगी.

तुला राशि :-- इस राशि वाले को केवल सूर्य की दशा में ही माणिक्य धारण करना चाहिए, जो कि लाभ के लिए शुभ होगा.

वृश्चिक राशि :-- इस राशि के व्यक्ति को माणिक्य धारण करना चाहिए क्योंकि यह राशि मंगल की है अत: धारण करने से राज्य कृपा, प्रतिष्ठा, नौकरी में सफलता प्राप्त होगी.

धनु राशि :-- इस राशि वाले को माणिक्य धारण करना शुभ होगा यह भाग्य की वृद्धि में सहायक होगा.

मकर राशि :-- इस राशि वाले को भूल कर भी मानिक्या नहीं धारण करना चाहिए. क्योंकि यह उसे शारीरिक कष्ट, रोग दुर्घटना आदि परेशानी दे सकता है.

कुम्भ राशि :-- ऐसे व्यक्ति को माणिक्य पहनना तो क्या इससे दूर दूर रहना चाहिए. वरना भारी हानि करेगा. पति या पत्नी दोनों के लिए हानिकारक रहेगा.

मीन राशि :-- इस राशि के व्यक्ति माणिक्य अपनी दशा सूर्य की दशा में धारण कर सकते है. जो रोगों से छुटकारा दिलवाने में सहायक सिद्ध होगा .......


Tuesday, 21 April 2015

अंग फड़कने से शुकन अपशुकन

By flipkart   Posted at  23:21   ASTROLOGY No comments
अंग फड़कने से शुकन अपशुकन


मानव शरीर के विभिन्न अंगों में कभी कभी फड़क होती हैं।

अंग फड़क्ने का कारण मानव शरीर में उतपन्न होने वाले वायु-विकार आदि के कारण शरीर कि माशपेशी में रह रहकर थोडा उभरना और दबना बताया जाता हैं।

हमारे भारत में अंगो के फड़कने के आधार पर शुभ-अशुभ ज्ञात करने की धारणा सालो से प्रचलित रही हैं।

प्रायः पुरुष का दाहिना (Right) अंग और स्री का बांया (Left) अंग फड़कना शुभ माना जाता हैं।

    यदि बाएं पैर की पहली और आखिरी उंगली फड़के, तो लाभ होता हैं।

    यदि दाएं पैर की पहली और आखिरी उंगली फड़के तो अशुभ होता हैं।

    यदि पांव की पिंडलीयां फड़कने से काम में बाधा उतपन्न होती हैं एवं यह शत्रु द्वारा परेशानी का संकेत हैं। दायां
घुटना फड़के, तो अशुभ फल कि प्राप्ति और बायां फड़के, तो शुभ फल कि प्राप्ति होती हैं।

    यदि बायां पैर फड़कना शुभ होता हैं, दायां पैर फड़कने से मुसीबतों का अंत होने का संकेत हैं।

    यदि बाईं जांघ के फड़कने से दोस्त से सहायता मिलने का संकेत हैं।

    यदि दाईं जांघ फड़कने से शत्रु शांत होने का संकेत हैं।

    यदि दाएं हाथ का अंगूठा फड़कने से शुभ समाचार मिलने का संकेत हैं।

    यदि बाएं हाथ का अंगूठा फड़कने से हानी होने का संकेत हैं।

    यदि यदि मस्तक फड़के तो भूमि लाभ मिलने का संकेत हैं।

    यदि यदि कंधा फड़के तो भोग-विलास में वृद्धि होने का संकेत हैं।

    यदि दोनों भौंहों के मध्य भाग में फड़कन होतो सुख प्राप्ति का संकेत हैं।

    यदि कपाल फड़के तो शुभ कार्य होने का संकेत हैं।

    यदि आँख का फड़कना धन प्राप्ति का संकेत हैं।

    यदि आँख के कोने फड़के तो आर्थिक उन्नति होने का संकेत हैं।

    यदि आँखों के पास का हिस्सा फड़के तो प्रिय व्यक्ति से मिलन होने का संकेत हैं।

    यदि हाथों का फड़कना उत्तम कार्य द्वारा धन प्राप्ति का संकेत हैं।

    यदि वक्षःस्थल का फड़कना विजय प्राप्ति का संकेत हैं।

    यदि हृदय फड़के तो इष्ट सिद्धी प्राप्त होने का संकेत हैं।

    यदि नाभि के फड़क्ने से स्त्री वर्ग को हानि होने का संकेत हैं।

    यदि पेट का फड़कना कोष वृद्धि होने का संकेत हैं।

    यदि गुदा का फड़कना वाहन सुख कि प्राप्ति का संकेत हैं।

    यदि कण्ठ के फड़कने से ऐश्वर्य लाभ कि प्राप्ति का संकेत हैं।

    यदि मुख के फड़कने से मित्र द्वारा लाभ होने का संकेत हैं।

    यदि होठों का फड़कना प्रिय वस्तु की प्राप्ति का संकेत हैं।
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