Monday, 27 April 2015

सिंहस्थ २०१६ (कुम्भ) महापर्व उज्जैन

By flipkart   Posted at  03:40   ASTROLOGY No comments


 उज्जैन धार्मिक अस्थाओ व परंपरा के सम्मलेन का एक अनूठा शहर जो कि न केवल भारत अपितु समस्त संसार कि धार्मिक अस्थाओ का केंद्र कहा जा सकता है यह वह पवित्र नगरी है जहा ८४ महादेव, सात सागर,९ नारायण ,२ शक्ति पीठो के साथ विश्व मै १२ जोतिलिंगो मै से एक राजाधिराज महाकालेश्वर विराजमान है यह वह पवन नगरी है जिसमें गीता जैसे महान ग्रन्थ के उद्बोधक श्री कृष्ण स्वयं शिक्षा लेने आए अपने पैरों कि धुल से पाषणों को भी जीवटी कर देने वाले प्रभु श्री राम स्वयम अपने पिता तर्पण करने शिप्रा तट पर आए यही वह स्थान है जो कि रामघाट कहलाता है इस प्रकार विश्व के एक मात्र राजा जिसने कि सम्पुर्ण भारत वर्ष के प्रत्यक नागरिक को कर्ज मुख्त कर दिया वह महान शासक विक्रमादित्य उज्जैन कि हि पवन भूमि पर जन्मे | पवन सलिला मुक्तिदायिनी माँ शिप्रा यही पर प्रवाहित होती है एवं विश्व का सबसे बड़ा महापर्व महाकुम्ब /सिंहस्थ मेला विश्व के ४ स्थान मै से एक उज्जैन नगर मै लगता है इस नगरी कि महात्मा वर्णन करना उतना हि कठिन है जितना कि आकाश मै तारा गानों कि गिनती करना जय श्री महाकाल !!!

 सिंहस्थ (कुम्भ) हमारी धार्मिक एवं आध्यात्मिक चेतना का महा पर्व है| सनातन कल से यह संसार का सबसे बढ़ा मेला कहा जा सकता है| पुराणोंमें कुम्भ पर्व मनाये जाने के संभंध में कई कथाएँ है| सबसेप्रामाणिक कथा समुद्र मंथन की है | देव और दानवों ने आपसी सहयोग से रत्नाकर आर्थात समुद्र के गर्भ में छिपी हूई अमूल्य सम्पंदा का दोहन करने का निश्चय किया | मंदराचल पर्वत को मथनी, क्चछप् को आधार एवं वासुकी नाग को मथनी की रस्सी बनाया| उसके मुख की तरफ दानव व पूंछ की तरफ देवतागण उसे पकडकर उत्साह के साथ समुद्र मंथन के कार्य में जुट गए| इन दोनों पक्षों की संगठनात्मक शक्ति के सामने समुद्र को झुखना पढ़ा | उसमे से कुल १४ बहुमूल वस्तुए, जिन्हें रत्न कहा गया, निकली| अंत में अमृत कुम्भ निकला | अमृत कलश को दानवों से बचाने के लिए देवताओं ने इसकी सुरक्षा का दायित्व बृहस्पति,चंद्रमा,सूर्य और शनि को सौप दिया|अमृत कलश प्राप्त हो जाने से चारो और प्रसन्ता का वातावरण छा गया| देवता एवं दानव दोनों अपनी अपनी थकावट भूल गए | देव एवं दानव दोनों पक्ष इस बात में उलझ गए की अमृत कुम्भ- (कलश) का कैसे हरण किया जावे| स्कन्दपुराण के अनुसार इन्द्र ने अपने युवा पुत्र जयंत को कलश लेकर भागने का संकेत दिया| इस चाल को दानव समझ गए| परिमाणस्वरूप देवता व दानवों में भयंकर संग्राम छिड़ गया| यह संग्राम १२ दिन तक चला | देवताओं का एक दिन मनुष्यों के एक वर्ष के बराबर होता है |आर्थात १२ वर्ष तक देव – दानवों का युद्ध चला | इस युद्ध में अमृत कुम्भ की छिना झपटी में मृत्युलोक में अमृत की कुछ बुँदे छलक पड़ी थी


 वे चार स्थान प्रधान तीर्थ हरिद्वार , प्रयाग, नासिक और उज्जैन है, इस संग्राम में दानवों ने इन्द्र पुत्र जयंत से अमृत कलश छुडाने का असंभव प्रयास किया था, किन्तु देवताओं में सूर्य ,गुरु और चंद्र के विशेष प्रयत्न से अमृत कलश सुरक्षित रहा और और भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर दानवों को भ्रमित करके सारा अमृत देवताओं में वितरित कर दिया था | सूर्य , चंद्रएवं गुरु के विशेष सहयोग से अमृत कलश सुरक्षित रहने के कारण इन्ही ग्रहों की विशिष्ट स्थितियों में कुम्भ पर्व मनाने की परम्परा है|

 यह धार्मिक मान्यता है की अमृत कलश से छलकी बूंदों से ये चारो तीर्थ और यहाँ की नदियॉं (गंगा, जमुना, गोदावरी, एवं क्षिप्रा ) अमृतमय हो गई है| अमृत कलश से हरिद्वार ,प्रयाग, नासिक, और उज्जैन में, अमृत बिंदु छलकाने के समय जिन राशियों में सूर्य,चंद्र एवं गुरु की स्थिति उस विशिष्ट योग के अवसर पर रहती है, तभी, वहाँ कुम्भ पूर्व इन राशियों में ग्रहों के योग होने पर ही होते है|

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