नाड़ी ज्योतिष को ज्योतिष विद्या में रहस्मयी क्यों माना जाता है।
नाड़ी ज्योतिष को ज्योतिष विद्या में रहस्मयी माना जाता है। इस विधि में जातक के हाथ के अंगूठे की छाप ले कर उस की सहायता से जातक के भूत, भविष्य व वर्तमान के बारे में बताया जाता है। कुछ मामलों में तो जातक का नाम और उसके माता-पिता का नाम, पत्नी का नाम और कई बातें बिल्कुल सटीक बता दिए गए हैं। नाड़ी ज्योतिष के इसी रहस्मय पक्ष पर कुछ प्रकाश डालने का काम करती है। ज्योर्तिविद आरजी राव की रंजन पब्लिकेशन से प्रकाशित पुस्तक भृगु नन्दी नाड़ी।
किताब की शुरूआत में ही लेखक ने यह स्पष्ट कर दिया है कि उन्होंने दो नाड़ी ग्रंथों नन्दी नाड़ी और भृगु नाड़ी में से कुछ भाग ले कर इस किताब की रचना की है। इस किताब में 500 से अधिक कुंडलियां हैं। कुछ कुंडलियों में केवल भविष्य कथन है और कुछ में भविष्य कथन के कारणों या विधि को भी स्पष्ट किया गया है।
इस किताब में प्रयुक्त नाड़ी ग्रंथों में कुंडलियों के लग्न का उल्लेख नहीं है। कई कुंडलियों में तो चंद्र यहां तक की बुध का भी प्रयोग नहीं किया गया है। इसकी एक वजह यह हो सकती है कि कुंडलियों के साथ दिया गया विश्लेषण एक मोटे तौर पर दिया गया है। और कम शब्दों में कुंडली की व्याख्या के लिए शीघ्रगति की जगह शनि, गुरू जैसे मंदगति ग्रहों को प्राथमिकता दी गई है।
यह किताब वास्तव में कारक ग्रहों के गोचर की सहायता से भविष्यकथन का तरीका बताती है। इसमें कार्य से संबंधित ग्रह को लेकर उससे दूसरे, सातवें और बारहवें भावों का अध्ययन किया गया है। इसके साथ ही ग्रह किस राशी में बैठा है, उस राशी का स्वामी, उस राशी में बैठे अन्य ग्रहों आदी का प्रभाव भी देखा गया है।
इस ग्रंथ का प्रयोग कैसे किया जाए :जब मैं इस किताब को लेकर आया तो शुरूआत करते ही मेरा मन उब गया। इसमें कोई सूत्र नहीं दिए गए हैं। सिर्फ कुछ कुंडलियां और उनका भविष्यकथन, बस। कुछ समय बाद मैंने इस किताब को फिर पढ़ना शुरू किया। इसके बाद इसमें से कुछ सूत्र निकाले हैं। लिख रहा हूं। आप सब भी लगा कर देखिए और बतायें की कितने सटीक बैठे।
गुरू को बच्चों संबंधित कथन, बुध को विद्या संबंधी, शनि को कर्म संबंधी, शुक्र को विवाह संबंधी कारक माना गया है यह तो प्रस्तावना में लेखक ने लिख दिया है। अब कुछ नई बातें बताता हूं।
नाड़ी ज्योतिष गोचर में गुरू का शुक्र पर से गुजरना विवाह और मृत्यु जैसी घटनाऐं लाता है। पत्नी, बहन और भौतिक सुखों का कारक शुक्र को माना है। बड़ा भाई मंगल से, और छोटा भाई बुध से देखने को कहा है। यही नहीं बुध से फाईनेंस को भी देखा गया है।
गुरू के केतू पर तीसरे दफा के गोचर के बाद जातक के जीवन में स्थायित्व आता है। यानी 36 साल की आयु के बाद। गुरू केतू से चौथे भाव में हो तो इस तीसरी बार के गोचर में जातक को ख्याती मिलती है। जब तक शनि मंगल पर से गोचर नहीं कर जाता जातक के जीवन में आराम नहीं आता।
विवाह का समय मंगल के शुक्र पर से गोचर से पता चलता है। अगर मंगल और शुक्र राहू-केतू अक्ष के दोनों ओर हों तो वैवाहिक जीवन में परेशानियां आती हैं। शनि-शुक्र का सम सप्तक होना भी यही प्रभाव पैदा करता है।
शनि व शुक्र के दूसरे में उच्च का बुध हो तो यह अति धनाड्य होने का योग बनाता है।
आपने मेरी बात को इतना समय दिया इसके लिए धन्यवाद।
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