वास्तुदोष को दूर करने के लिए घर में स्वस्तिक क्यों जरुरी है !
पिछली पोस्ट में मांगलिक चिंहों में निहित ऊर्जा संबंधी जानकारी के बाद आप समझ ही गए होंगे की स्वास्तिक में अंर्तनिहित 1,00,0000 बोविस ऊर्जा का लाभ लेने के लिए ही हिंदू धर्म में स्वस्तिक को सर्वमान्य व सर्वप्रयोग्य बनाया गया है। अब बताते हैं कि किस तरह इस ऊर्जा की सहायता से किसी भी तरह के वास्तु दोष से छुटकारा पाया जा सकता है।
प्राचीन काल में जिन वास्तु नियमों का विद्वान कर गए हैं उनका महत्व आज भी कम नहीं हुआ है। परन्तु कई कारणों से इन नियमों को पालन न करने की सूरत में घर में किसी न किसी तरह का वास्तु दोष आ ही जाता है। इन वास्तु दोषों के निवारण के उपाय किसी प्रशिक्षित वास्तु विशेषज्ञ से कराने चाहिए। लेकिन फौरी तौर पर एक स्वस्तिक प्रयोग बता रहें हैं जिससे वास्तु की समस्या का कुछ हद तक निवारण हो सकता है।
वास्तु दोष को दूर करने के लिए बनाया गया स्वस्तिक 6 इंच से कम नहीं होना चाहिए। घर के मुख्य़ द्वार के दोनों ओर जमीन से 4 से 5 फुट ऊपर सिंदूर से यह स्वस्तिक बनाऐं। घर में जहां भी वास्तु दोष है और उसे दूर करना संभव न हो तो वहां पर भी इस तरह का स्वस्तिक बना दें।
जिस भी दिशा की शांति करानी हो उस दिशा में 6"x6" का तांबे का स्वस्तिक यंत्र पूजन कर लगा देना चाहिए। इस यंत्र के साथ उस दिशा स्वामी का रत्न भी यंत्र के साथ लगा दें। नींव पूजन के समय भी इस तरह के यंत्र आठों दिशाओं व ब्रह्म स्थान पर दिशा स्वामियों के रत्न के साथ लगा कर गृहस्वामी के हाथ के बराबर गड्ढा खोद कर, चावल बिछा कर, दबा देना चाहिए। पृथ्वी में इन अभिमंत्रित रत्न जड़े स्वस्तिक यंत्र की स्थापना से इनका प्रभाव काफी बड़े क्षेत्र पर होने लगता है।
दिशा स्वामियों की स्थिति इस प्रकार है- ब्रह्म स्थान-माणिक, पूर्व-हीरा, आग्नेय-मूंगा, दक्षिण-नीलम, नैऋत्य-पुखराज, पश्चिम-पन्ना, वायव्य-गोमेद, उत्तर-मोती, इशान-स्फटिक।
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