द्वादश काली साधन
यह सारी की सारी ब्रम्हान्ड मात्र एक अपार सक्रिय चेतना की प्रवाह है अर्थात इस अपार शक्ति की द्वादश काली की प्रतिक रूप मे तीस अंशो मे तथा इन्ही तीस अंशो को माह की रूप मे दर्शायी गयी है. इन्ही तीस अंशो की प्रथम प्रतिप्रदा से लेकर पूर्णमासी एवं फिर पूर्णमासी के बाद प्रतिप्रदा से अमावस्या तक तिथियो की फलस्वरूप तीस अंश की प्रत्येक अंश मे विभक्त की कियी गयी है। इस प्रकार हमारी पृथ्वी की यही तीस अंश मास की फलस्वरूप अंश रेखा कहलाती है। यही द्वादश काली प्रथम सृष्टि + स्थिति एवं संहार करती रहेती है।
अर्थात
प्रथम स्थिति मे (स्थिति+सृष्टि) ,(सृष्टि+स्थिति) एवं (सृष्टि+संहार)…………….
द्वितीय स्थिति मे (सृष्टि+सृष्टि) ,(स्थिति+स्थिति) एवं (स्थिति+संहार)…………
तृतीय स्थिति मे (संहार+संहार) ,(संहार+सृष्टि) एवं (संहार+स्थिती) की रूप मे कालचक्र का बनाना एवं बिगड़ना यह क्रिया निरंतर चलती रहेती ही है। इस प्रकार से ब्रम्हान्ड व्यापक शक्ति की स्वयंभू स्वरूप है और इसी स्वरूप की चारों ओर आठ भैरव रूपी शक्तीयो की निवास है।
भैरव अर्थात (भ) से भरण(सृष्टि) ,(र) से रमण(स्थिति) तथा (व) से वरण(संहार)। यही अष्ट भैरव अष्ट दिशाओ को भी दर्शाते है। इन्हि की बीच मे पूर्ण राज भैरव है,क्योकि इसी पूर्ण राज भैरव अर्थात सूर्य की पृथ्वी (माता) भी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की परिक्रमा करती रहेती है। यहा पूर्ण राज भैरवजी पर मै ज्यादा नहीं लिखना चाहती हु ,परंतु समय आने पर इनकी साधना अवश्य दुगी।
साधना:- यह बात तो आपको समज़ मे आ ही गयी होगी की द्वादश काली साधना कितनी महत्वपूर्ण साधना है । इस साधना से बहोत सारी लाभों की मान्यताये कई तंत्र शास्त्र मे बताई गयी है।
ज्यो साधक/साधिका अपनी पूर्ण जीवन काल मे द्वादश काली साधना सम्पन्न करते है वह साधक ब्रम्हान्ड भेदन क्रिया के अधिकारी होते है और सारे दृष्ट ग्रह उनके सामने हाथ बांधे हुये खड़े होते ही है..................
सामग्री:- महाकाली चित्र,काली हकीक माला,एक सुपारी,काली धोती,काला आसन,एक हरे रंग की नींबू ।
विनियोग :-
ॐ अस्य श्री द्वादश काली मंत्रस्य भैरव ऋषी:,उष्णीक छंन्द:,कालिका देवता , क्रीं बीजम ,हुं शक्ती: ,क्रीं किलकं मम अभीष्ट सिध्द्यर्थे जपे विनियोग:।
देवी की स्तुति कीजिये परंतु अपनी भावना की आधार पर,ज्यो भी आपकी दिल से निकले वह स्तुति एवं ध्यान कीजिये ।
अब भगवान महाकालभैरव जी को कोई एक पुष्प मंत्र बोलते हुये समर्पित कीजिये।
ॐ हूं स्फ़्रौं यं रं लं वं क्रौं महकालभैरव सर्व विघ्नन्नाशय नाशाय ह्रीं श्रीं फट् स्वाहा
अब निम्न मंत्र की 18 मालाये नवरात्रि की प्रतिप्रदा से अष्टमी तक करनी है और नवमी को किसी अग्नि पात्र मे अग्नि प्रज्वलित कीजिये साथ मे काले तिल और काली मिर्च की 151 आहुती दीजिये।यह विधान सम्पन्न करते ही आपकी साधना पूर्ण मनी जायेगी।
मंत्र :
। । ॐ क्रीं हुं क्रीं द्वादश कालीके क्रीं हुं क्रीं फट् । ।
निम्न मंत्र बोलते हुये देवी को प्रणाम कीजिये और कोई भी लाल रंग की पुष्प समर्पित कीजिये।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हुं ह्रीं श्री सर्वार्थदायक ब्रम्हान्ड स्वामिनी नमस्ते नमस्ते स्वाहा
अब देवी को नींबू की बली चढानी है,इसीलिए निम्न मंत्र बोलते हुये ज़ोर से नींबू पे प्रहार कीजिये और देवी की सामने उसे फोड़ दीजिये।
ॐ क्रीं ह्रीं क्रीं फट बलीं दद्यात स्वाहा
साधना काल मे शुद्धता की पालन कीजिये,और नवरात्रि की पावन पर्व इस साधना की लिये यह तीव्रतम समय है क्यूकी यह नवरात्रि मंगलवार से प्रारम्भ हो रही है। और यह साधना समाप्त होते ही रात्री मे माँ स्वप्न मे दर्शन देती है और हमसे कोई भी इच्छा प्रगट करने की आज्ञा देती है,हम माँ से ज्यो भी वरदान मांगेंगे वह माँ तथास्तु कहेते हुये प्रदान कर देती ही है।अब जब माँ ही सब कुछ देने की लिये तयार है तो मै साधना की बारे मे और क्या लाभ लिख सकता हु ।
यह सारी की सारी ब्रम्हान्ड मात्र एक अपार सक्रिय चेतना की प्रवाह है अर्थात इस अपार शक्ति की द्वादश काली की प्रतिक रूप मे तीस अंशो मे तथा इन्ही तीस अंशो को माह की रूप मे दर्शायी गयी है. इन्ही तीस अंशो की प्रथम प्रतिप्रदा से लेकर पूर्णमासी एवं फिर पूर्णमासी के बाद प्रतिप्रदा से अमावस्या तक तिथियो की फलस्वरूप तीस अंश की प्रत्येक अंश मे विभक्त की कियी गयी है। इस प्रकार हमारी पृथ्वी की यही तीस अंश मास की फलस्वरूप अंश रेखा कहलाती है। यही द्वादश काली प्रथम सृष्टि + स्थिति एवं संहार करती रहेती है।
अर्थात
प्रथम स्थिति मे (स्थिति+सृष्टि) ,(सृष्टि+स्थिति) एवं (सृष्टि+संहार)…………….
द्वितीय स्थिति मे (सृष्टि+सृष्टि) ,(स्थिति+स्थिति) एवं (स्थिति+संहार)…………
तृतीय स्थिति मे (संहार+संहार) ,(संहार+सृष्टि) एवं (संहार+स्थिती) की रूप मे कालचक्र का बनाना एवं बिगड़ना यह क्रिया निरंतर चलती रहेती ही है। इस प्रकार से ब्रम्हान्ड व्यापक शक्ति की स्वयंभू स्वरूप है और इसी स्वरूप की चारों ओर आठ भैरव रूपी शक्तीयो की निवास है।
भैरव अर्थात (भ) से भरण(सृष्टि) ,(र) से रमण(स्थिति) तथा (व) से वरण(संहार)। यही अष्ट भैरव अष्ट दिशाओ को भी दर्शाते है। इन्हि की बीच मे पूर्ण राज भैरव है,क्योकि इसी पूर्ण राज भैरव अर्थात सूर्य की पृथ्वी (माता) भी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की परिक्रमा करती रहेती है। यहा पूर्ण राज भैरवजी पर मै ज्यादा नहीं लिखना चाहती हु ,परंतु समय आने पर इनकी साधना अवश्य दुगी।
साधना:- यह बात तो आपको समज़ मे आ ही गयी होगी की द्वादश काली साधना कितनी महत्वपूर्ण साधना है । इस साधना से बहोत सारी लाभों की मान्यताये कई तंत्र शास्त्र मे बताई गयी है।
ज्यो साधक/साधिका अपनी पूर्ण जीवन काल मे द्वादश काली साधना सम्पन्न करते है वह साधक ब्रम्हान्ड भेदन क्रिया के अधिकारी होते है और सारे दृष्ट ग्रह उनके सामने हाथ बांधे हुये खड़े होते ही है..................
सामग्री:- महाकाली चित्र,काली हकीक माला,एक सुपारी,काली धोती,काला आसन,एक हरे रंग की नींबू ।
विनियोग :-
ॐ अस्य श्री द्वादश काली मंत्रस्य भैरव ऋषी:,उष्णीक छंन्द:,कालिका देवता , क्रीं बीजम ,हुं शक्ती: ,क्रीं किलकं मम अभीष्ट सिध्द्यर्थे जपे विनियोग:।
देवी की स्तुति कीजिये परंतु अपनी भावना की आधार पर,ज्यो भी आपकी दिल से निकले वह स्तुति एवं ध्यान कीजिये ।
अब भगवान महाकालभैरव जी को कोई एक पुष्प मंत्र बोलते हुये समर्पित कीजिये।
ॐ हूं स्फ़्रौं यं रं लं वं क्रौं महकालभैरव सर्व विघ्नन्नाशय नाशाय ह्रीं श्रीं फट् स्वाहा
अब निम्न मंत्र की 18 मालाये नवरात्रि की प्रतिप्रदा से अष्टमी तक करनी है और नवमी को किसी अग्नि पात्र मे अग्नि प्रज्वलित कीजिये साथ मे काले तिल और काली मिर्च की 151 आहुती दीजिये।यह विधान सम्पन्न करते ही आपकी साधना पूर्ण मनी जायेगी।
मंत्र :
। । ॐ क्रीं हुं क्रीं द्वादश कालीके क्रीं हुं क्रीं फट् । ।
निम्न मंत्र बोलते हुये देवी को प्रणाम कीजिये और कोई भी लाल रंग की पुष्प समर्पित कीजिये।
ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हुं ह्रीं श्री सर्वार्थदायक ब्रम्हान्ड स्वामिनी नमस्ते नमस्ते स्वाहा
अब देवी को नींबू की बली चढानी है,इसीलिए निम्न मंत्र बोलते हुये ज़ोर से नींबू पे प्रहार कीजिये और देवी की सामने उसे फोड़ दीजिये।
ॐ क्रीं ह्रीं क्रीं फट बलीं दद्यात स्वाहा
साधना काल मे शुद्धता की पालन कीजिये,और नवरात्रि की पावन पर्व इस साधना की लिये यह तीव्रतम समय है क्यूकी यह नवरात्रि मंगलवार से प्रारम्भ हो रही है। और यह साधना समाप्त होते ही रात्री मे माँ स्वप्न मे दर्शन देती है और हमसे कोई भी इच्छा प्रगट करने की आज्ञा देती है,हम माँ से ज्यो भी वरदान मांगेंगे वह माँ तथास्तु कहेते हुये प्रदान कर देती ही है।अब जब माँ ही सब कुछ देने की लिये तयार है तो मै साधना की बारे मे और क्या लाभ लिख सकता हु ।
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