Sunday, 5 April 2015

ॐ भूर्भुव: स्व:।

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                                       ॐ भूर्भुव: स्व:।

 

तत् सवितुर्वरेण्यम्।। भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो न: प्रचोयदयात्।।

अर्थात्-वह जो असीम परिकल्पना के पार हैं, जिनकी देह सकल, कुशाग्र व कारणात्मक है, हम उस ज्ञान के प्रकाश का ध्यान करते हैं जो समस्त देवों में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किए हुए है। हे प्रभु ! हमारे ध्यान में व चिन्तन में तुम सदैव व्याप्त हो।
ॐ भू:        अर्थात्    सकल देवी को नमन
ॐ भुव:        अर्थात्    कुशाग्र देवी को नमन
ॐ स्व:        अर्थात्    कारणात्मक देवी को नमन
ॐ मह:        अर्थात्    जिसे अस्तित्व सा स्वामीत्व प्राप्त है उसे नमस्कार है।
ॐ जन:        अर्थात्    ज्ञान की देवी को नमस्कार
ॐ तप:        अर्थात्    प्रकाश की देवी को नमस्कार
ॐ सत्यम्’     अर्थात्    सत्य की देवी को नमस्कार

एते गन्धपुष्पे पुष्प अर्पण करते समय निम्न मंत्रों का उच्चारण करें-
ॐ गं गणपतये नम:।
अर्थात्- इन पुष्पों व विशिष्ट गंधो को समर्पित करते हुए गणों के ईश अर्थात् श्री गणेश को ज्ञान का प्रकाश है व बहुसंयोजक हैं, उन्हें हमारा नमस्कार है।
ॐ आदित्यादिनवग्रहेभ्यो नम:।।
अर्थात् इन सुगंधित पुष्पों को समर्पित करते हुए सूर्य सहित नवग्रहों को नमस्कार है।

ॐ शिवादिपंचदेवताभ्यो नम:।।
अर्थात् इन सुगंधित पुष्पों को समर्पित करते हुए महादेव सहित पंच देवताओं क्रमश: शिव, शक्ति, विष्णु, गणेश व सूर्य को नमस्कार है।
ॐ इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नम:।।
अर्थात् इन सुगंधित पुष्पों को समर्पित करते हुए देवराज इन्द्र सहित दसों दिशाओं के रक्षकों को नमस्कार है।
ॐ मत्स्यादिदशावतारेभ्यो नम:।।
अर्थात् इन सुगंधित पुष्पों को समर्पित करते हुए उन परम विष्णु को नमस्कार है, जिन्होंने मत्स्य सहित दस अवतार धारण किए थे।

ॐ प्रजापतये नम:।।
अर्थात्- इन सुगंधित पुष्पों द्वारा सृष्टि के रचयिता को नमस्कार है।
ॐ नमो नारायणाय नम:।।
अर्थात्-इन सुगंधित पुष्पों द्वारा संपूर्ण ज्ञान की चेतना को नमस्कार है।
ॐ सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:।।
अर्थात् इन सुगंधित पुष्पों द्वारा समस्त देवों को नमस्कार है।
ॐ श्री गुरुवे नम:।।
अर्थात् इन सुगंधित पुष्पों द्वारा गुरु को नमस्कार है।

ॐ ब्रह्माणेभ्यो नम:।।
अर्थात् इन सुगंधित पुष्पों द्वारा ज्ञानके समस्त परिचितों (ब्राह्मणों) को सादर नमस्कार है।
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दाहिने हाथ की मध्यमा में या कलाई पर घास को बांधें-
ॐ कुशासने स्थितो ब्रह्मा कुशे चैव जनार्दन:।
कुशे ह्याकाशवद् विष्णु: कुशासन नमोऽस्तुते।।
अर्थात्-इस कुश (घास) में परम ब्रह्म का प्रकाश स्थित है तथा इसी में निवास करते हैं श्री जनार्दन भी। इसी कुश के प्रकाश में स्वयं परम विष्णु का प्रकाश भी विद्यमान है, अत: मैं इस कुश के आसन को नमस्कार करता हूं।

आचमन करते समय निम्न मंत्रों का उच्चारण करें-
ॐ केशवाय नम:।
अर्थात् विष्णुरूप केशव को नमस्कार है।
ॐ माधवाय नम:।।
अर्थात् श्री विष्णु रूप माधव को नमस्कार है।
ॐ गोविन्दाय नम:।।
अर्थात् श्री विष्णु रूप गोविन्दा प्रभु को नमस्कार है।
ॐ विष्णु: ॐ विष्णु:  विष्णु;।।
ॐ ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके नम:।

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