कुम्भ लग्न
धनिष्ट नक्षत्र के  अंतिम दो चरणों ,शतभिषा के पूर्ण चरण  के साथ पूर्ण  भद्र पद के तीन चरणों  के मध्य कुम्भं राशी बनती है !कुम्भ राशी अपने अप मई  एक बलिष्ट राशी है!इस  राशी का स्वामी शनि देव है !मकर एवं मीन के मध्य  विराजमान है!एवं लगन के  बारे मई विस्तृत से जानिए !कुम्भ लग्न मई जन्म  लेने वाले के लक्ष्ण निचे  दर्शाए है !कुम्भ लग्न हो तो माता का शिर पश्चिम  को जीर्ण वस्त्र कुछ काल  कम्बल ओदा हो साधारण शित क्रू भोजन किया हो  ,पिता घर पर न हो !स्त्रीया ४  ,२ एवं १ स्त्री बाद मे आइ  !   स्त्रियों  मे एक गर्भिणी हो !बालक थोडा  राये ,बालक के होठ  मोटे ,मस्तक लम्बा  प्रकृति गर्म ये सारे लक्ष्ण कुम्भ  राशी वाले के होते है !
            
इस लग्न वाले के लिए बुध तथा गृह   शुभ फलदायक इसके विपरीत चन्द्रमा ,सूर्य ,मंगल तथा गुरु दुःख दायक गृह होते   है !इस लग्न मे जन्म  लेने वाले जातक की वृष मिथुन , तुला ,व  मकर राशी   वालो से मित्रता  रहती है !परन्तु मेष ,कर्क ,सिह व वृषभ राशी वाले वालो से   विरोध रहता है !इस लग्न मे जन्म लेने वाले जातक को कभी कभी पूर्वाभाश हो   जाता है !कुम्भ लग्न वाले जातक की कुंडली मे सूर्य,बुध ,तथा गुरु तृतीय  भाव  मे हो तो सूर्य की महादशा पूर्ण सुख सम्पति देती है !
            
कुम्भ लग्न मे शुभ ग्रह होने पर जातक के यजस्वी होने का योग बनता है !एवं नये कार्य व अविष्कार मे सफलता दिलाता है! 
          
 कुम्भ लग्न मे लग्नधिपति शनि तथा धनेश गुरु का परस्पर यदि   स्थान परिवर्तन हो तो बृहस्पति की महादशा मे जातक को मिश्रित फल मिलता   है!कुम्भ लग्न छठा चंद्रमा हो तो जातक कमजोर होता है !एवं शक्त व नेदा रोगी   हो सकता है !एवं दुर्घटना होने का भी रहता है! 
 
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