बदरीनाथ धाम में शिव जी का शिवलिंग
एक कथा है कि विष्णु जी के अवतार नर और नारायण (लिंक) ने बदरीनाथ धाम में शिव जी का शिवलिंग स्थापित कर, उनकी उपासना की थी। लम्बी और कठिन तपस्या के बाद शिव जी प्रकट हुए , और उन्हें कहा कि आप तो स्वयं ही पूज्य हैं, आप यह कठिन तप क्यों कर रहे हैं। फिर भी जब आपने हमारा ध्यान करते हुए तप किया है , तो आप जो भी हमसे चाहें वह मांगें।
इस पर श्री नर और नारायण ने शिव जी से प्रार्थना की , कि वे ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा ही केदारनाथ धाम में बसे रहें। जो भी मनुष्य आपके दर्शन करे वह समस्त दुखों से मुक्त हो जाए। शिव जी उनकी इस प्रार्थना को सहर्ष स्वीकारते हुए ज्योतिर्लिंग रूप में वहीँ रहने लगे ।
एक और कथा विख्यात है इस धाम के बारे में। कहते हैं कि महाभारत युद्ध में कौरवों पर विजय प्राप्त करने के बाद पांडव बड़े दुखी रहने लगे थे । अपने ही बांधवों को मार कर प्राप्त राज्य उन्हें कोई सुख न दे पाता था। वे प्रायश्चित्त के लिए शिव जी के दर्शन करने गए।
आयु हो जाने पर पांडव द्रौपदी सहित हिमालय जाकर शिव जी की आराधना करने गए। रुद्रप्रयाग में उन्हें ऐसा लगा मानो कि शिव जी उन्हें दिखे हैं । लेकिन जब वे उनकी तरफ जाने लगे तो शिव जी भैंस का रूप लेकर वहां से तेज़ी से भागने लगे। यह जानकार कि प्रभु हमसे क्रोधित हैं और हमसे मिलना ही नहीं चाहते, पांडव दुखी हुए। वे उनके पीछे दौड़े और आखिर केदारनाथ धाम में उन तक पहुँच पाये। किन्तु प्रभु शिव भैंस के रूप में धरती में प्रविष्ट हो गए। सिर्फ भैंसे का पिछला भाग दिखता था - जिसे खींच कर बाहर निकालने का भीम ने बहुत यत्न किया , किन्तु खींच न सके। यही आगे शिवलिंग में परिवर्तित हो गया। और भी पांच हिस्से अलग अलग शिवलिंगों में बदले - जो पंच केदार कहलाते हैं। ये सभी गढ़वाल (उत्तराखंड) के हिमालयी क्षेत्र में हैं।
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