पिंक सिटी जयपुर का शाही पैलेस हवा महल
बडी चौपड स्थित हवामहल का निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई प्रताप सिंह (1778-1803 ई.) ने 1799 ई. में करवाया था। इसके वास्तुकार उस्ताद लालचन्द थे। इस दो चौक की पांच मंजिली इमारत के प्रथम तल पर शरद ऋतु के उत्सव मनाये जाते थे। दूसरी मंजिल जडाई के काम से सजी है इसलिये इसे रतन मन्दिर कहते हैं। तीसरी मंजिल विचित्र मन्दिर में महाराजा अपने आराध्य श्रीकृष्ण की पूजा-आराधना करते थे। चौथी मंजिल प्रकाश मन्दिर है और पांचवीं हवा मन्दिर जिसके कारण यह महल हवामहल कहलाता है। यदि सिरह ड्योढी बाजार में खडे होकर देखें तो हवामहल की आकृति श्रीकृष्ण के मुकुट के समान दिखती है, जैसा कि महाराजा प्रताप सिंह इसे बनवाना चाहते थे।
जयपुर की रानियां और राजकुमारियों के लिए विशेषतौर पर बनाए गए हवा महल का निर्माण वर्ष 1799 में महाराज सवाई प्रताप सिंह ने करवाया था। इस मकसद सिर्फ यह था कि ताकि विशेष मौकों पर निकलने वाले जुलूस व शहर आदि को देख सकें । इस खूबूसूरत भवन में कुल 152 खिड़कियां और जालीदार छज्जे हैं। राजपूत और मुगल कला का बेजोड़ नमूना है यह। हवादार झरोखों के कारण इसे हवा महल का नाम दिया गया। यह बड़ी चौपड़ बाजार में स्थित है। इसके वास्तुकार उस्ताद लालचन्द थे। दो चौक की पांच मंजिली इमारत के हवामहल की पहली मंजिल पर शरद ऋतु के उत्सव मनाए जाते थे। यह मंजिल रत्नों से सजी हुई है, इसलिए इसे रतन मन्दिर भी कहते हैं। इसके ऊपर की मंजिल में एक मन्दिर है, जहां महाराजा अपने आराध्य गोविंद देव पूजा-आराधना करते थे। चौथी मंजिल मको प्रकाश मन्दिर है और पांचवीं मंजिल को हवा मन्दिर कहते हैं। हवा महल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यदि इसे सिरह ड्योढी बाजार से देखा जाए तो इसकी आकृति श्रीकृष्ण के मुकुट के समान दिखती है।
हवा महल की खिडकियों में रंगीन शीशों का अनूठा शिल्प। जब सूर्य की रौशनी इन रंगीन शीशों से होकर हवा महल के कमरों में प्रवेश करती है तो पूरा कमरा इन्द्रधनुषी आभा से भर जाता है।
हवा महल, जयपुर शहर के दक्षिणी हिस्से में बड़ी चौपड़ पर स्थित है। जयपुर शहर भारत के समस्त प्रमुख शहरों से सड़क मार्ग, रेल मार्ग व हवाई मार्ग से सीधा जुड़ा हुआ है। जयपुर का रेलवे स्टेशन भारतीय रेल सेवा की ब्रॉडगेज लाइन नेटवर्क का केंद्रीय स्टेशन है
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