कहते हैं डिसीजन मेकिंग पावर अनुभव के साथ आती है परंतु वर्तमान में यह कहना गलत होगा क्योंकि कार्पोरेट वर्ल्ड में अलग-अलग स्तरों पर युवाओं से लेकर प्रौढ़ महत्वपूर्ण निर्णय ले रहे हैं।
कई कंपनियों में डी-सेंट्रलाइज्ड वर्क कल्चर होता है जिसमें कर्मचारी अपने स्तर पर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र रहते हैं। निर्णय लेने के लिए परिस्थितियों का अध्ययन और निर्धारित समय के भीतर निर्णय लेने की कला को विकसित करना है।
एक छोटी सी कहानी है जिसके माध्यम से पता चलेगा कि निर्णय लेने में जरा सी चूक में आप क्या कर बैठते हैं। पति-पत्नी अपनी शादी की 40 वीं सालगिरह मना रहे थे। पति ने अपनी पत्नी को खूबसूरत लॉकेट दिया, जो उसने एक एंटिक शॉप से लिया था। पत्नी लॉकेट पाकर खूब खुश हुई और उसने जैसे ही लॉकेट को देखने के लिए पुरानी सी डिबिया को खोला तो उसमें से एक परी निकली।
परी ने दोनों से कहा कि मैं तुम दोनों के 40 वर्षों तक एक-दूसरे के प्रति समर्पण व प्रेम से अभिभूत हूं और दोनों की एक-एक विश पूर्ण करूंगी। पहली बारी पत्नी की थी। पत्नी ने कहा कि मैं अपने पति के साथ दुनिया घूमना चाहती हूं। परी ने तत्काल उनकी टेबल पर विश्वभ्रमण के लिए एअर टिकट और होटल की व्यवस्था वाले वाउचर आदि प्रस्तुत कर दिए।
अब बारी पति की थी। पति सोच में पड़ गया कि क्या मांगा जाए, उसने परी से कहा कि मैं अपनी पत्नी के साथ दुनिया तो घूमना चाहता हूं पर दिल की इच्छा यह है कि मैं युवा पत्नी के साथ जाना चाहता हूं। परी ने एक बारगी पति को देखा और कहा कि ठीक है तुम्हारी इच्छा पूर्ण कर देती हूँ। उसने पत्नी को 23 वर्ष का बना दिया।
पति खुश हुआ पर उसने स्वयं की स्थिति देखी तब परी ने उसे 90 वर्ष का बना दिया था। दोस्तों पति ने परिस्थितियों को सही तरीके से नहीं भांपा और ऐसे विश की मांग कर दी जिसका न कोई औचित्य था और न ही परी को यह बात समझ में आने वाली थी क्योंकि पति यह भूल गया कि परी ने पहले कहा था कि मैं तुम दोनों के 40 वर्षों के प्रेम समर्पण से अभिभूत हूं। उसने स्वयं का स्वार्थ देखा जबकि पत्नी ने दोनों के फायदे की बात कही।
परिस्थितियों को समझें :-
दोस्तों निर्णय लेने के पूर्व आप किन परिस्थितियों में निर्णय ले रहे हैं वह काफी महत्वपूर्ण होती है। कार्पोरेट वर्ल्ड में भी आपको कंपनी व सभी की भलाई को लेकर निर्णय लेना होता है। आप केवल स्वयं की स्वार्थ सिद्धी के लिए अपने अनुसार निर्णय नहीं ले सकते।
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