स्वप्न लोक और ज्योतिष
स्वप्न के सन्दर्भ में कुछ प्रसिद्द घटनाएँ:--
‘‘दि अंडर-स्टैंडिंग आफ ड्रीम्स एंड देयर एन्फ्लूएन्सेस ऑन दि हिस्ट्री ऑफ मैन’’ हाथर्न बुक्स न्यूयार्क द्वारा प्रकाशित पुस्तक में एडाल्फ हिटलर के एक स्वप्न का जिक्र है, जो उसने फ्रांसीसी मोर्चे के समय सन् १९१७ में देखा था । उसने देखा कि उसके आसपास की मिट्टी भरभराकर बैठ गई है, वह तथा उसके साथी लोहे में दब गये हैं- हिटलर बचकर भाग निकले, किंतु तभी बम विस्फोट होता है- उसी के साथ हिटलर की नींद टूट गयी । हिटलर अभी उठकर खड़े ही हुए थे कि सचमुच तेज धमाका हुआ, जिससे आसपास की मिट्टी भरभराकर ढह पड़ी और खंदकों में छिपे उनके तमाम सैनिक बंदूकों सहित दबकर मर गये। स्वप्न और दृश्य का यह सादृश्य हिटलर आजीवन नहीं भूले ।
टीपू सुल्तान को अपने स्वप्नों पर आश्चर्य हुआ करता था, सो वह प्रतिदिन स्वप्न डायरी में नोट किया करता था। उनके सच हुए स्वप्नों के विवरण कुछ इस प्रकार हैं-
‘‘शनिवार 24 तारीख रात को मैंने सपना देखा। एक वृद्ध पुरुष कांच का एक पत्थर लिए मेरे पास आए हैं और वह पत्थर मेरे हाथ में देकर कहते हैं- सेलम के पास जो पहाड़ी है उसमें इस काँच की खान है, यह कांच मैं वहीं से लाया हूँ। इतना सुनते-सुनते मेरी नींद खुल गई ।" टीपू सुल्तान ने अपने एक विश्वास पात्र को सेलम भेजकर पता लगवाया, तो ज्ञात हुआ कि सचमुच उस पहाड़ी पर काँच का भंडार भरा पड़ा है। इन घटनाओं से इस बात की पुष्टि होती है कि समीपवर्ती लोगों को जिस तरह बातचीत और भौतिक आदान-प्रदान के द्वारा प्रभावित और लाभान्वित किया जा सकता है, उसी तरह चेतना के विकास के द्वारा बिना साधना भी आदान-प्रदान के सूत्र खुले हुए हैं ।
धर्मयुग के १६ फरवरी,१९७५ के अंक में स्वप्नों की समीक्षा करते हुए एक अंधे का उदाहरण दिया गया था, अंधे से पूछा गया कि क्या तुम्हें स्वप्न दिखाई देते हैं इस पर उसने उत्तर दिया-मुझे खुली आँख से भी जो वस्तुएँ दिखाई नहीं देतीं, वह स्वप्न में दिखाई देती हैं। इससे फ्रायड की इस धारणा का खंडन होता है कि मनुष्य दिन भर जो देखता और सोचता-विचारता है, वही दृश्य मस्तिष्क के अंतराल में बस जाते और स्वप्न के रूप में दिखाई देने लगते हैं। निश्चय ही यह तथ्य यह बताता है कि स्वप्नों का संबंध काल की सीमा से परे अतींद्रिय जगत से है अर्थात् चिरकाल से चले आ रहे भूत से लेकर अनंत काल तक चलने वाले भविष्य जिस अतींद्रिय चेतना में सन्निहित हैं, स्वप्न काल में मानवीय चेतना उसका स्पर्श करने लगती है ।
स्वप्न में मनुष्य की रुचि हमेशा से ही है। हमारे वेदों-पुराणों में भी स्वप्न के बारे में जिक्र किया गया है। 'अग्नि पुराण' में स्वप्न विचार और शकुन-अपशकुन पर भी विचार किया गया है । हमारे ऋषि-मुनियों के अनुसार सपनों का आना ईश्वरीय शक्ति का वरदान है और निद्रा की चतुर्थ अवस्था या रात्रि के अंतिम प्रहर में आए स्वप्न व्यक्ति को भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास कराते हैं । हमारे आदि ऋषि-मुनियों ने स्वप्न के मर्म को समझते हुए इनके ज्योतिषीय पक्ष के शुभा शुभ फलों के बारे में तो बताया, लेकिन यह पहेली अनसुलझी रह गई कि स्वप्न क्यों आते हैं और इनका मनोवैज्ञानिक आधार क्या है ?
स्वप्न के सन्दर्भ में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण:--
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक वैवस्टर के अनुसार स्वप्न सोए हुए व्यक्ति के अवचेतन मस्तिष्क में चेतनावस्था के दौरान घटित घटनाओं, देखी हुई आकृतियों, कल्पनाओं व विचारों का अपरोक्ष रूप से चित्रांकन होना है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक फ्रॉयड के अनुसार हमारे दो मस्तिष्क होते हैं- पहला चेतन और दूसरा अवचेतन । हमारा जब चेतन मस्तिष्क सुप्तावस्था में होता है तो अवचेतन मस्तिष्क सक्रिय होना प्रारंभ होता है और इंसान के जीवन में घटी घटनाओं या निर्णयों के उन पहलुओं पर गौर करता है जिन पर चेतन मस्तिष्क में गौर नहीं कर पाता । स्वप्न के बारे में सन 1953 ईस्वी में यूसिन सेरिन्स्की सन १९७६ ईस्वी में मनोवैज्ञानिक ऎलेने हॉबसन व रॉबर्ट मैकार्ले ने अघ्ययन किया और इन्होंने फ्रॉयड के अवचेतन मस्तिष्क की अवधारणा को परिवर्तित रूप में प्रतिपादन किया जिसके कारण इन्हें आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा। इनके अनुसार नींद की चार अवस्था होती हैं। चौथी अवस्था में "रेम" सिद्धांत कार्य करता है। इसमें चेतन मस्तिष्क द्वारा उपेक्षित घटनाओं या अवस्थाओं का समेकित रूप होकर प्रतिकृति के रूप में सामने आते हैं । फ्रॉयड के ही अनुसार बुरे सपने आपको भावनात्मक अवसाद से बचाने के लिए आपका मनोबल बढ़ाते हैं और साथ ही भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास भी कराते हैं ।
स्वप्न के सन्दर्भ में चिकित्सा-विज्ञान और जीव-विज्ञान का दृष्टिकोण:--
जीव वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक अघ्ययन के अनुसार निद्रावस्था के दौरान दबाव कम करने वाला हॉर्मोन "कॉर्टिसोल" का स्त्राव ज्यादा होता है और इंसानी मन की स्मृतियां धीरे-धीरे मंद होती जाती हैं। ऎसे में अवचेतन मस्तिष्क से शेष बची स्मृतियां ही स्वप्न के रू प में साकार होती हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि सपनों का संबंध घटित हुई या होने वाली घटनाओं से किसी ना किसी रू प में होता है। हां इनमें स्थान, पात्र व घटना की निरंतरता बीच-बीच में परिवर्तित हो सकती है ।
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