Monday, 13 April 2015

जीवन की दौड़

By flipkart   Posted at  00:04   No comments
कुछ वर्ष पूर्व सीटल के विशेष ओलम्पिक खेलों की एक घटना है। मानसिक एवं शारीरिक रूप से असक्षम युवाओं 
कुछ वर्ष पूर्व सीटल के विशेष ओलम्पिक खेलों की एक घटना है। मानसिक एवं शारीरिक रूप से असक्षम युवाओं

की 100 मीटर की दौड़ के आयोजन का समय आ गया था। मानसिक एवं शारीरिक रूप से असक्षम प्रतिभागी
बन्दूक की गोली चलने की प्रतीक्षा कर रहे थे। जैसे ही गोली चली, सभी प्रतिद्वन्दी प्रारंभिक रेखा से भागे और जीतने

की प्रबल इच्छा को लेकर आगे बढ़ने लगे। लेकिन एक छोटा लड़का लड़खड़ा कर शुरू में ही गिर गया और रोने
लगा। बाकी आठ प्रतिभागियों ने उसके रोने की आवाज़ सुनी और उन आठों ने पीछे मुड़कर देखा।और फिर वह
आठों के आठों वापस लौटे और उस बालक के पास पहुंचे। एक बालिका जो "डाउन्स सिन्ड्रोम" नामक बीमारी
से ग्रसित होने के कारण मानसिक एवं शारीरिक रूप से असामान्य थी, झुकी और उसने उस छोटे से बालक को
प्यार से चूमा और बोली, " अरे कोई बात नहीं , अब तुम बिल्कुल ठीक से दौड़ोगे ।"और इसके बाद जो भी हुआ
उसे देखकर स्टेडियम में बैठे सभी दर्शकों ने दांतों तले उंगली दबा ली। इसके बाद नौ के नौ प्रतिभागियों ने एक दूसरे के हाथ पकड़ कर एक साथ भागना शुरू किया और सबने एक साथ 100 मीटर की अन्तिम रेखा पार की।
इस दौड़ के समाप्त होने के पश्चात स्टेडियम में उपस्थित अपार जनसमूह खड़ा हो गया और सबने मिलकर काफ़ी
देर तक तालियाँ बजा कर इन शारीरिक एवं मानसिक रूप से असामान्य प्रतिभागियों का मनोबल बढाया।
जो लोग उस समय वहां उपस्थित थे वे आज तक अन्य लोगों को यह कहानी बड़े गर्व से सुनते हैं। क्यों ? क्योंकि मन ही मन वह जानते हैं की हमारे जीवन में स्वयं जीतने से अधिक महत्वपूर्ण है जीतने में अन्य

लोगों की मदद करना, चाहे ऐसा करने में उन्हें अपनी गति कुछ कम ही करनी पड़े। चाहे ऐसा करने में उन्हें अपना मार्ग ही कुछ क्यों न बदलना पड़े। " क्या दूसरी मोमबत्ती

जलाने के बाद पहली मोमबत्ती की रौशनी धीमी पड़ जाती है ? "नहीं न" । क्या दूसरी मोमबत्ती को बुझा देने
से पहली मोमबत्ती ज्यादा तेज़ी से चमकने लगती है ? "


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