Saturday, 11 April 2015

कुंडली में प्रथम भाव

By flipkart   Posted at  00:55   No comments
भारतीय ज्योतिष में जन्मकुंडली के पहेले घर को प्रथम भाव अथवा  लग्न कहा जाता हे | तथा भारतीय वैदिक ज्योतिष अनुसार इसे जन्मकुंडली के बारह भावो में सभी से ज्यादा महत्त्व पूर्ण माना जाता हे |
       किसी भी जातक - व्यक्ति  के जन्म समय पर उसके जन्म स्थान पर  आकाश में उदित राशी को उस व्यक्ति का लग्न माना जाता हे | तथा इस राशी अर्थात लग्न अथवा लग्न राशी को उस जातक की जन्मकुंडली बनाते समय पहेले घर या भाव में स्थान दिया जाता हे | तथा इसके बाद आनेवाली राशियो को जन्मकुंडली में क्रमशः दूसरा ...तीसर ...बारहवा घर में स्थान दिया जाता हे |
द्रष्टांत से समजे तो ...यदि किसी जातक - व्यक्ति के जन्म के समय नभमंडल में मेष राशि का उदय हो रहा हे तो मेष राशि उस जातक का जन्म लग्न कहा जाता हे तथा इस जातक की जन्म कुंडली में पहेले घर या भाव में स्थान दिया जाता हे |
तथा मेष राशि के बाद में आनेवाली राशियो को वृषभ से लेकर मीन तक क्रमशः २ से १२ भाव में स्थापित किया जाता हे |
किसी भी जन्मकुंडली में लग्न स्थान अथवा प्रथम भाव का महत्त्व सब से अधिक होता हे साथ ही लग्न राशि अनुसार ही जातक के जीवन के लगभग सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रो में इस प्रथम घर - भाव -राशी का भारी प्रभाव पाया जाता हे |
 कुंडली धारक के स्वाभाव -व्यक्तित्व -चरीत्र जानने हेतु ये प्रथम भाव सविशेष महत्त्व रखता हे साथ ही इस घर के अध्ययन से ही कुंडली धारक की आयु ...स्वास्थ ...व्यवसाय ...सामाजिक पद -प्रतिष्ठा ...मनोवृत्ति ...कार्यप्रणाली जेसे अन्य कई महत्वपूर्ण क्षेत्र और विषय की सटीक जानकारी मिलती हे |
जन्मकुंडली का प्रथम भाव शारीर के अंगो में सिर...मस्तिष्क और आसपास के क्षेत्रो का प्रतिनिधित्व करता हे | तथा इस भाव पर किसी भी अशुभ ग्रह का प्रभाव या द्रष्टि होने से शारीर के इन उपरी अंगो से संबंधित रोग ...चोट या अन्य परेशानियों का करण बन सकती हे |
जन्मकुंडली का प्रथम भाव हमारे गत जन्म के शुभ- अशुभ कर्मो तथा वर्तमान जीवन में इन कर्मो के प्रभाव से उत्पन्न फल और आनेवाले भविष्य में शुभ -अशुभ फल का निर्देश भी करता हे |
  इस प्रथम भाव के माध्यम से जातक की समाजकी उपलब्धियों -उसके व्यवसाय तथा सहस संघर के बाद मिलनेवाली सफलता के बारेमे भी जानकारी मिलती हे | साथ ही जातक का वैवाहिक जीवन - बौद्धिक स्तर -सुखो का भोग -मानसिक विकास और क्षमता -स्वाभाव की मृदुता अथवा कठोर -निष्ठुर होना तथा अन्य भी अनेको विषय की जानकारी प्राप्त होती हे |
 प्रथम भाव व्यक्ति की स्वाभिमान और अहंकार की सीमओं को भी दर्शाता हे | जातक की जन्मकुंडली के प्रथम भाव में एक या अधिक अशुभ ग्रहों का प्रभाव उसके बाहरी या निजी जीवन को प्रभावित करता हे ...किसी भी क्षेत्र में अनेको समस्या -अपयश का करण बन सकता हे | साथ ही जातक के प्रथम भाव में एक या अधिक शुभ ग्रह या उनका प्रभाव होने से उसके निजी या बाहरी जीवन में बडी सफलता -उपलब्धि और खुशियो का कारण बन सकता हे |
इसीलिए ज्योतिष में जातक की जन्मकुंडली के प्रथम भाव का विशेष अध्ययन बहोत ही ध्यान पूर्वक करना अनिवार्य बन जाता हे |

                 

 

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