खजुराहो मंदिरों में सबसे विशाल कन्दारिया महादेव
खजुराहो मंदिरों में सबसे विशाल कन्दारिया महादेव
खजुराहो के मंदिरों में सबसे विशाल कंदरिया महादेव मंदिर मूलतः शिव मंदिर है। मंदिर का निर्माणकाल १००० सन् ई. है तथा इसकी लंबाई १०२', चौड़ाई ६६' और ऊँचाई १०१' है। स्थानीय मत के अनुसार इसका कंदरिया नामांकरण, भगवान शिव के एक नाम कंदर्पी के अनुसार हुआ है। इसी कंदर्पी से कंडर्पी शब्द का विकास हुआ, जो कालांतर में कंदरिया में परिवर्तित हो गया।
स्थापत्य
यह विशाल मंदिर खजुराहो की वास्तुकला का आदर्श, अपने बाह्य आकार में ८४ समरस आकृति के छोटे- छोटे अंग तथा श्रंग शिखरों में जोड़कर बनाया, अनूठे उच्च शिखर से युक्त हे। मंदिर अपने अलंकरण एवं विशेष लय के कारण दर्शनीय है। मंदिर भव्य आकृति और अनुपातिक सुडौलता, उत्कृष्ट शिल्पसज्जा और वास्तु रचना के कारण मध्य भारतीय वास्तुकृतियों में श्रेष्ठ माना जाता है। मुख्य मंडप, मंडप और महामंडप के साथ- साथ इसका आधार योजना, रुप, ऊँचाई, उठाव, अलंकरण तथा आकार शास्रीय पद्धति का उत्तम उदाहरण प्रस्तुत करता है। इसकी विशिष्टा यह भी है कि इसकी ऊँचाई की ओर जाते हुए उत्थान श्रंग अत्यंत प्रभावशाली प्रतीत होता है। खजुराहो का यह एक मात्र मंदिर है, जिसकी जगती के दोनों पार्श्वों� में और पीछे प्रक्षेपण है। इसकी जगती लगभग तीन मीटर ऊँची है। इसकी धराशिला ग्रेनाई पत्थर की है तथा इस पर रेतीले पत्थर की खार- शिलाएँ बनी हुई हैं। मंदिर भि कमल पूष्प की पत्तियों से सजे हैं तथा जालय, कुंभ और बाहर को निकली पट्टिकाएँ तमाल पत्रों से सजी हुई हैं। मंदिर ऊँचे अधिस्थान पर स्थापित है, जिसपर अनेक सुसज्जित मूर्तियाँ हैं।
इन मूर्तियों में दो पंक्तियाँ, हाथियों, घोड़ों, योद्धाओं, शिकारियों, मदारियों, संगीतज्ञों, नर्तकों, और भक्तों की मूर्तियाँ आसीन है। मंदिर की तीन पट्टियों में देवी- देवताओं, सुर सुंदरियों, मिथुनों, व्यालों और नागिनों की मूर्तियाँ हैं। मंदिर के भीतर दो मकर- तोरण है। अप्सराओं की प्रतिमाएँ सुंदरता के साथ अंकित की गयी है। यहाँ की सभी मूर्तियाँ लंबी हैं तथा आकृति में संतुलित प्रतीत होती है। यहाँ नारी के कटावों का सौंदर्य स्पष्ट दिखता है।
तलच्छंद और ऊर्ध्वच्छंद के प्रत्येक अंगों की रचना और इसका अलंकरण अद्वितीय है। उर्ध्वच्छंद में सबसे अधिक लयबद्ध प्रक्षेपणों और रथिकाओं के सहित इसकी दांतेदार योजना उल्लेखनीय है।
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