खजुराहो मंदिरों में सबसे विशाल कन्दारिया महादेव
प्रवेशद्वार
मंदिर का प्रवेश द्वार पंचायतन शैली का बना हुआ है। इस पर विषाणयुक्त और समुज्जवल देवताओं और संगीतज्ञों इत्यादि से अलंकृत तोरण तथा भव्य ज्यतोरण देखने योग्य हैं। अर्द्धमंडप और मंडप के उत्कीर्ण सघन हैं। परिक्रमा क्षेत्र में बाहरी भित्ती पर वृहदाकार मंच है। परिक्रमा के बाहर तथा मंदिर के बाहर का मंच बलिष्ट और गहन आकार में उठाया गया है। मंदिर का प्रत्येक भाग एक- दूसरे से जुड़ा हुआ है और पूर्व- पश्चिम दिशा की ओर इसका विस्तार है। छज्जों के रुप में वातायन बनाकर मंडप को महामंडप बनाया गया है। भीतर हवा जाने के लिए वातायन है और मंडप तीन ओर से खुले हैं। मंदिर की दीवारें पुख्ता हैं तथा छज्जायुक्त वातायन है, जो रोशनी जाने का साधन है। मूर्तियाँ छज्जे से ही शुरु हो जाती है। छज्जे और वातायन मूर्तियों पर रोशनी और परछाइयाँ पड़ती है। मंदिर का गर्भगृह सर्वोच्च स्थान पर है। वहाँ पहुँचने के लिए चंद्रशिलायुक्त सीढियों से ऊपर चढ़ना पड़ता है। सप्तरथ गर्भगृह के साथ ही शिखर के नीचे के वर्गाकार भाग को भी सात भाग दिये गए हैं।
मंडप
कंदिरिया मंदिर की जंघा पर मंडप और मुखमंडप के बाहरी भाग के कक्षासन्न पर राजसेना, वेदिका कलक, आसन्नपट्ट, कक्षासन्न है। मंदिर का छत कपोत भाग से शुरु होता है तथा व्रंदिका से छत को उठाता गया है। मंदिर के प्रत्येक मंडप की अलग- अलग छत है। सर्वाधिक ऊँचाईवाली छत गर्भगृह की है तथा इसका अंत सबसे ऊँचे शिखर पर हुआ है। यह शिखर चार उरु: शिखरों से सजाया गया है तथा असंख्य छोटे- छोटे श्रृंग भी बनाये गए हैं। इनमें कर्णश्रृंग तथा नष्टश्रृंग प्रकृति के श्रृंग हैं। मूलमंजरी के मुख्य आधार पर चतुरंग के रथ, नंदिका, प्रतिहार और कर्ण अंकित किये गए हैं। मंदिर के महामंडप की छत डोमाकार है, जिसे छोटे- छोटे तिलकों ( पिरामिड छतों ) से बनाया गया है। इससे ॠंग शैली स्पष्ट दिखाई देती है। प्रथम छत चार तिलकों से बनी है। साथ- ही तिलकों की चार अन्य पंक्तियाँ भी पिरामिड आकार में दिखाई देती हैं। उत्तर- दक्षिण की छत पर पाँच सिंहकरण, कुट- घंटा से उठ कर छत को सजाते हैं। यह छत पीठ और गृवा से युक्त है तथा इसको चंद्रिका, कलश और बीजपुंक से अलंकृत किया गया है।
मुख्य मंडप
मुख्यमंडप चार भद्रक- स्तंभों पर बनाया गया है। इसका ऊपरी आधा भाग आसन्न प के ऊपर है तथा नीचे का आधा भाग आसन्नप के नीचे स्थित है। इस भाग को कमलों से सजाया गया है। मंडप से मंडप तक आने के लिए मकरतोरण है। मुख्य मकरतोरण से शिल्पशैली पूर्णतया मिलती है। गर्भगृह के दरवाजे पर चंद्रशिला की चार सीढियाँ हैं। दरवाजे पर नौ शाख हैं। इसका विवरण निम्नलिखित है :-
प्रथम शाखा पर साधारण उत्कीर्ण हैं।
द्वितीय पर अप्सराएँ हैं।
तृतीय पर व्याल है।
चतुर्थ पर मिथुन है।
पंचम पर व्याल आसीन है।
छठी पर सुंदर अप्सराएँ अंकित हैं।
सप्तम साधारण उत्कीर्ण है।
अष्टम पर कमल पत्र का अंकन किया गया है।
नवीं शाखा पर लहरदार लकीरें और नाग रुपांकिंत है।
सभी रथिकाएँ उद्गमों से सुसज्जित है। दाहिनी शाख पर कमल- पत्र और बायीं ओर यमुना अंकित किया गया है। द्वार शिला की एक रथिका सरस्वती को अभय के साथ प्रदर्शित करती है। यहाँ सरस्वती चक्रदार कमल दंड और कमंडल भी धारण किये हुए हैं। स्तंभ शाखा के नीचे रथिका में शिव- पार्वती को बैठे दिखाया गया है और नाग रथिका के नीचे की रथिका, चार व्यक्तियों को आसीन किया गया है। भीतरी वितान में कमल पुष्प और कोनों में कीर्कित्त मुख प्रतिमाएँ हैं। रेतीले पत्थर की एक पीठिका पत्थर के शिवलिंग को सहारा देती दिखाई गई है।
गर्भ गृह
मंदिर का गर्भगृह चतुरंग है तथा ऊँचे अधिस्थान पर टिका हुआ है। उत्तर प पर हाथी, घोड़े, आदमी और विविध दृश्य मिथुन सहित अंकित है। यहाँ वेदीवंघ पर जंघा है, जिसपर दो पंक्तियों में मूर्तियाँ हैं। यहाँ देवता, अप्सराएँ, व्याल और मिथुन- युग्म अंकन सुंदरता के साथ किया गया है।
कंदरिया महादेव मंदिर संधार प्रासाद में निर्मित है। इसमें एक शार्दूल सामने हैं और एक कोने में। इसकी पीठ की ऊँचाई काफी ज्यादा है। मंदिर का मुखपूर्व की ओर है। सीढियाँ चौड़ी हैं तथा मुखचतुष्कि तक जाती है। मुखचतुष्कि बंदनमालिका सुंदर है।
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