भगवान शिव के रूप में
परमात्मा के ब्रह्मा और विष्णु रूप को समझना और उन्हें आत्मसात करना तो सहज है, परंतु उनके शिव रूप को पूर्णतः आत्मसात करना अत्यधिक मुश्किल है,क्योंकि शिव रूप में उनके रूप, श्रंगार, शक्तियों और अवतारों में इतनी विशिष्टता एवं विरोधाभास बना रहा है कि उन्हें अनगिनत नामों की उपाधियां प्रदान की जाती रही। उनहें मान्यता तो [ रूद्र - भेरव ] संहारक और विध्वंसक देव की दी गई, लेकिन उन्हें आशुतोष (शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव), परमशिव (समस्त जगत का कल्याण करने वाले देव), रूद्र (मृत्यु के मुंह से निकाल लेने वाला), ओघड़ (गुण, रस,राग, दोष रहित), ओघड़दानी, श्मशानवासी, कापालिक, पिनाक्षी, विरूपाक्ष,दिगंबर जैसे अनगिनत नामों की मान्यता भी दी गई। शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं,जिन्होंने देवताओं को अमत्व प्रदान करने के उद्देश्य से समुद्र से प्राप्त हुए विष को स्वयं अपने कण्ठ में धारण कर लिया और स्वयं नीलकण्ठ कहलाए।
परमात्मा के ब्रह्मा और विष्णु रूप को समझना और उन्हें आत्मसात करना तो सहज है, परंतु उनके शिव रूप को पूर्णतः आत्मसात करना अत्यधिक मुश्किल है,क्योंकि शिव रूप में उनके रूप, श्रंगार, शक्तियों और अवतारों में इतनी विशिष्टता एवं विरोधाभास बना रहा है कि उन्हें अनगिनत नामों की उपाधियां प्रदान की जाती रही। उनहें मान्यता तो [ रूद्र - भेरव ] संहारक और विध्वंसक देव की दी गई, लेकिन उन्हें आशुतोष (शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव), परमशिव (समस्त जगत का कल्याण करने वाले देव), रूद्र (मृत्यु के मुंह से निकाल लेने वाला), ओघड़ (गुण, रस,राग, दोष रहित), ओघड़दानी, श्मशानवासी, कापालिक, पिनाक्षी, विरूपाक्ष,दिगंबर जैसे अनगिनत नामों की मान्यता भी दी गई। शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं,जिन्होंने देवताओं को अमत्व प्रदान करने के उद्देश्य से समुद्र से प्राप्त हुए विष को स्वयं अपने कण्ठ में धारण कर लिया और स्वयं नीलकण्ठ कहलाए।
शास्त्रों में शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों के साथ-साथ पंचानन शिव, अष्टमुखी शिव, अर्धनरेश्वर , मृत्युंजय शिव, दक्षिणाभिमुख शिव, हरिहर शिव ,पशुपतिनाथ से लेकर नटराज तक अनगिनत रूपों में मान्यता प्रदान की है।
शिव ही एकमात्र देव हैं, जिन्हें पूजने से पहले प्राण-प्रतिष्ठित करने की आवश्यकता नहीं रहती। पार्थिव शिवलिंग तो स्वतः ही चेतना संपन्न होते हैं और उन्हें पूजन से पहले किसी तरह की प्राण प्रतिष्ठा करने की भी कोई आवश्यकता नहीं होती है। ऐसे शिवलिंगों को कहीं भी, किसी मंदिर, वन क्षेत्र, पहाड़, गुफा से लेकर शमशान भूमि तक, किसी चबूतरे अथवा वृक्ष के नीचे स्थापित करके ही पूजा जा सकता है और उनकी कृपा प्राप्त की जा सकती है। इसी तरह शिव की उपासना के लिए किसी प्रकार की विशिष्ट सामग्री आदि की जरुरत नहीं होती। उन्हें तो फल, फूल, बिल्व पत्र आदि समर्पित करना ही पर्याप्त होता है और अगर वह भी उपासना नहीं हो पाए,तो शिव को रिझाने के लिये केवल एक लोटा पानी से ही काम चल जाता है। या शिव मानस पूजा ही पर्याप्त हे |
भगवान अपने शिव भक्तों की करूणा पुकार, शीघ्र सुनते हैं और तत्काल ही अपनी कृपा दृष्टि प्रदान करके अपने आशीर्वाद स्वरूप उनके समस्त दुखों को हर लेते हैं।शिव महिमा की ऐसी अनुभूतियां, सहस्त्रों साधकों को समय-समय पर मिलती रहीहैं। शिवोपासना का प्रसिद्ध महामंत्र है महामृत्यंजय मंत्र। इस अकेले मंत्र के विविधअनुष्ठानों के द्वारा ही न केवल अपमृत्यु का ही निवारण होता देखा गया है, बल्किलंबे समय से परेशान करती आ रही लाइलाज बीमारियों से भी सहज ही मुक्तिमिलते देखी गई है, यहां तक कि इस महामंत्र के अनुष्ठान से साधक की समस्तअभीष्ट मनोकामनाएं भी सहज ही पूर्ण हो जाती है। इस महामृत्युंजय मंत्र के द्वाराघोर विपत्तियों में फंसे, मुकदमेबाजी में उलझे, कर्ज से दबे हुए लोगों को कुछ हीसमय में राहत देखी गई है। इस महामृत्युंजय मंत्र के दो रूप हैं और जिनकेअनुष्ठान के अलग-अलग विधान हैं।
शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग एवं अन्य मुख्य लिंग
शिव पूजा द्वारश ज्योतिर्लिंग की हिंदू धर्म में विशेष मान्यता है। ऐसा माना जाता हैकि इन ज्योतिर्लिंग में स्वयं उमाशंकर महादेव मां पार्वती के साथ सदैव विराजमानरहते हैं। इन ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही शिव कृपा की प्राप्ति हो जाती है। अगरइन सिद्धी स्थलों पर पूर्ण भक्ति से शिव मंत्रों या शिव स्त्रोत आदि का पाठ कियाजाए, तो शिव निश्चित ही अपने भक्त की प्रार्थना स्वीकार करते हैं और उसे सहस्त्रोंसमस्याओं से निकाल सकते हैं।
शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग की तो बहुत मान्यता रही है, लेकिन इनके अतिरिक्त भीशिव के अनेक मंदिर में भगवान शिव अपने विभिन्न रूपों में विराजमान होकरसंसार का कल्याण कर रहे हैं। हमारे देश में द्वादश ज्योतिर्लिंग के अतिरिक्त शिव केकुछ प्रमुख पूजाग्रह इस प्रकार रहे हैं।
तमिलनाडु के शिव कांची क्षेत्र में एकमेश्वर नामक शिव केन्द्र, केरल प्रदेश मेंतिरूचनापल्ली में श्रीरन्नम् से पांच मील दूर जम्बूकेश्वर शिवलिंग, नेपाल केकाठमाण्डू में बागमती नदी के दक्षिणी तट पर विराजमान पशुपतिनाथ, बांग्लादेशके चटगांव स्थित चंद्रमूर्तिकार चंद्रनाथ शिव, उत्तरप्रदेश के प्रयोग स्थित नीकठेश्वरशिव, बिठूर स्थित मधुरेश्वर, वृंदावन स्थित गोपीश्वर शिव, उत्तरांचल में भीमतालस्थित भीमेश्वर महादेव, कर्णप्रयाग स्थित महामृत्युंजय महादेव हरिद्वार स्थितबिल्वेश्वर शिवलिंग, कनखल स्थित दक्षेश्वर शिव, हिमाचल में स्थित मणिकर्णस्थित मणीकर्णेश्वर, मण्डी स्थित बिजली महादेव और नीकण्ठ महादेव, मणिमहेश, कैलाश मानसरोवर स्थित हिम निर्मित अमरनाथ, पूंछ स्थित शिवखेड़ीमहादेव, राजस्थान के पुष्कर स्थित पुस्ववर महादेव .. और भी प्रादेशिक मान्यता अनुसार ..हर कंकर में शंकर ...हर हर महादेव ...जय हो .
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