जाने भोजन के समय पानी पीने के क्या गुण है
भोजन के पहले पानी पीने से आँखों पर कालापन या अतिसार (दस्त) होता है और दुबलापन आता है। भोजन के अन्त में पानी पीने से मोटापा बढ़ता है, कफ होता है। बीच में जलपान से धातु-निर्माण होता है और सुख मिलता है।
अधिक पानी पीने से अन्न पचता नहीं है। पानी न पीने से भी वही दोष होता है। इसलिए मनुष्य को (जठर) अग्नि बढ़ाने के लिए बार-बार थोड़ा-थोड़ा पानी पीना चाहिए। प्यास लगे तो खाओ मत, भूख लगे तो जल मत पियो। प्यास से परेशान रहने वाले को तिल्ली हो जाती है और भूखा रहने वाले को भगन्दर (पाइल्स) हो जाते हैं।
साँझ होने तक चाहे तो हजार घड़े पानी पी लें। परन्तु सूर्यास्त के बाद एक बूँद पानी भी एक घड़े के समान होता है। रात्रि-भोजन के समय थोड़ा पानी भी विष है। रात में प्यास लगे तो ठण्डे पानी से कुल्ले कर लेने चाहिए। रात में मैथुन से थके या सम्भोगलीन लोगों को पानी तत्काल तृप्ति देता है। वह धातु तथा इन्द्रिय को बल प्रदान करता है। कभी गर्म पानी से शीतल जल का निवारण न करें। अन्न पच जाने पर तृप्ति तक शीतल जल पियें।
पानी से जलन शान्त हो जाती है। शेष अन्न पच जाता है। अजीर्ण होने पर पानी दवाई है और पच जाने पर पानी बल प्रदान करता है। पानी भोजन में अमृत है। परन्तु भोजन के बाद वह विष है।
जल पचने के काल तीन प्रकार के बताये गये हैं- कच्चा पानी एक प्रहर (तीन घंटे) में पचता है, गरम से ठंडा किया पानी आधे प्रहर (डेढ़ घंटे) में और गरम पानी उसके भी आधे समय (पौन घंटे) में पच जाता है।
धूप में तपा पानी कफ और वात दूर करता है। खुजली नहीं करता, पित्त को तोड़ता है, पाण्डु (पीलिया) दूर करता है और शुक्ल (आँखों के सफेद भाग का रोग) दूर करता है।
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