प्राचीनकाल में विशालकाय महल और मंदिर बनते थे। नगर को चारों ओर से सुरक्षित करने के लिए परकोटे बनते थे अर्थात चारों ओर विशालकाय पत्थरों की दीवारें होती थीं और उन दीवारों में चारों दिशाओं में 4 दरवाजे होते थे। मध्यकाल में विदेशी आक्रमण के चलते भव्य किले बनाए जाने लगे। किले को 'दुर्ग' कहा जाता है।
किले
ऐसे किले हमारे गौरवशाली इतिहास और युद्ध को दर्शाते हैं। इनमें से कुछ किलों को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज में भी शामिल किया गया है। आज हम आपको भारत के कुछ ऐसे किलों के बारे में बता रहे हैं जिनका इतिहास जानकार आप हैरान रह जाएंगे।
लाल किला : जब किलों की बात होती है तो जुबान पर लाल किले का नाम सबसे पहले आता है। यह किला दुनियाभर में प्रसिद्ध है। यह किला दिल्ली में स्थित है। इस किले के अंदर देखने लायक कई चीजें हैं। मोती मस्जिद, दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास देखने के लिए काफी लोग रोज ही आते हैं। यह किला यमुना नदी के किनारे है।
यह भारत की सबसे महत्वपूर्ण धरोहरों में से एक है, जहां से देश के प्रधानमंत्री देश के लोगों को संदेश देते हैं और स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहराते हैं। लाल किले का निर्माण तोमर शासक राजा अनंगपाल ने 1060 में किया था। बाद में पृथ्वीराज चौहान ने इसका पुनर्निर्माण कराया और फिर मुगलों के शासन के दौरान इस किले को मुगल बादशाह शाहजहां ने तुर्क लुक दिया।
लाल कोट अर्थात लाल रंग का किला, जो कि वर्तमान दिल्ली क्षेत्र का प्रथम निर्मित नगर था। इसकी स्थापना तोमर शासक राजा अनंगपाल ने 1060 में की थी। साक्ष्य बताते हैं कि तोमर वंश ने दक्षिण दिल्ली क्षेत्र में लगभग सूरजकुंड के पास शासन किया, जो 700 ईस्वी से आरंभ हुआ था। फिर चौहान राजा पृथ्वीराज चौहान ने 12वीं सदी में शासन ले लिया और उस नगर एवं किले का नाम किला राय पिथौरा रखा था। राय पिथौरा के अवशेष अभी भी दिल्ली के साकेत, महरौली, किशनगढ़ और वसंतकुंज क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं।
आगरा का किला : उत्तरप्रदेश के आगरा में स्थित आगरा का किला यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में दर्ज है। इस किले में मुगल बादशाह बाबर, हुंमायूं, अकबर, जहांगीर, शाहजहां व औरंगजेब रहते थे। यहीं से उन्होंने आधे भारत पर शासन किया। ये सभी विदेशी थे जिन्हें भारत में 'तुर्क' कहा जाता था। इन तुर्क शासकों ने इस चौहानवंशी किले पर कब्जा करके इसे अरबी लुक दिया।
आगरा का किला मूलतः एक ईंटों का किला था, जो चौहान वंश के राजपूतों के पास था। इस किले का प्रथम विवरण 1080 ईस्वी में आता है, जब महमूद गजनवी की सेना ने इस पर कब्जा कर लिया था। पुरुषोत्तम नागेश ओक की किताब 'आगरे का लाल किला हिन्दू भवन है' में भी इसका जिक्र है।
सिकंदर लोधी (1487-1517) ने भी इस किले में कुछ दिन गुजारे थे। लोधी दिल्ली सल्तनत का प्रथम सुल्तान था। उसकी मृत्यु भी इसी किले में 1517 में हुई थी। इसके बाद उसके पुत्र इब्राहीम लोधी ने गद्दी संभाली।
पानीपत के युद्ध के बाद यह किला मुगलों के हाथ में आ गया। यहां उन्हें अपार संपत्ति मिली। फिर इस किले में इब्राहीम के स्थान पर बाबर आया और उसने यहीं से अपने क्रूर शासन का संचालन किया।
इतिहासकार अबुल फजल ने लिखा है कि यह किला एक ईंटों का किला था जिसका नाम बादलगढ़ था। यह तब खस्ता हालत में था तब अकबर ने इसका जीर्णोद्धार करवाया। हिन्दू शैली में बने किले के स्तंभों में बाद में तुर्क शैली में नक्काशी की गई। बाद में अकबर के पौत्र शाहजहां ने इसे अपने तरीके से रंग-रूप दिया। उसने किले के निर्माण के समय राजपुताना समय की कई पुरानी इमारतों व भवनों को तुड़वा भी दिया था।
चित्तौड़गढ़ का किला : यह किला राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है। चित्तौड़गढ़ में भारत के सबसे पुराने और भव्य किले देखने को मिलेंगे। उन्हीं किलों में से एक चित्तौड़ का किला है। यह किला बेराच नदी के किनारे स्थित जमीन से लगभग 500 फुट ऊंचाई वाली एक पहाड़ी पर बना हुआ है। इसे 'पानी का किला' भी कहा जाता है, क्योंकि यहां 84 पानी की जगहें हैं। चित्तौड़गढ़ का किला चित्तौड़गढ़-बूंदी रोड से लगभग 4 से 5 किमी की दूरी पर स्थित है।
इस किले में 7 दरवाजे हैं जिनके नाम हिन्दू देवताओं के नाम पर पड़े हैं। प्रथम प्रवेश द्वार पैदल पोल के नाम से जाना जाता है, जिसके बाद भैरव पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोली पोल, लक्ष्मण पोल और अंत में राम पोल है, जो सन् 1459 में बनवाया गया था। किले की पूर्वी दिशा में स्थित प्रवेश द्वार को सूरज पोल कहा जाता है। इस किले में कई सुंदर मंदिरों के साथ-साथ रानी पद्मिनी और महाराणा कुम्भा के शानदार महल हैं। हालांकि इस किले के कई हिस्से अब खंडहर में बदल चुके हैं।
लगभग 700 एकड़ के क्षेत्र में फैला चित्तौड़गढ़ का यह किला राजपूत शौर्य के इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान रखता है। यह किला 7वीं से 16वीं शताब्दी तक सत्ता का एक महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था। इस किले पर 3 बार आक्रमण किए गए। पहला आक्रमण सन् 1303 में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा, दूसरा सन् 1535 में गुजरात के बहादुरशाह द्वारा तथा तीसरा सन् 1567-68 में मुगल बादशाह अकबर द्वारा किया गया था।
सोनार किला : राजस्थान में पहाड़ी दुर्ग, जल दुर्ग, वन दुर्ग और रेगिस्तानी दुर्ग के बेमिसाल उदाहरण देखने को मिलते हैं। जैसलमेर के किले को 'रेगिस्तानी दुर्ग' कहते हैं। रेगिस्तान के बीचोबीच स्थित यह दुनिया के सबसे बड़े किलों में से एक है। इसे रावल जैसवाल ने 1156 ईस्वी में बनवाया था। जैसलमेर किले को 'सोनार किले' के नाम से भी जाना जाता है।
सुबह सूर्य की अरुण चमकीली किरणें जब इस दुर्ग पर पड़ती हैं तो बालू मिट्टी के रंग-परावर्तन से यह किला पीले रंग से दमक उठता है। सोने-सी आभा देने के कारण इसे 'सोनार किला' या 'गोल्डन फोर्ट' भी कहा जाता है। इस दुर्ग की विशालता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस दुर्ग के चारों ओर 99 गढ़ बने हुए हैं। इनमें से 92 गढ़ों का निर्माण 1633 से 1647 के बीच हुआ था।
यह किला शहर से 76 किमी दूर त्रिकुटा पहाड़ी पर त्रिकोण आकार में बनाया गया है। किले में सबसे ज्यादा आकर्षक जैन मंदिर, रॉयल पैलेस और बड़े दरवाजे हैं। जैसलमेर रेगिस्तान का शहर है, जो त्रिकुटा पहाड़ी, हवेलियों और झीलों के लिए प्रसिद्ध है।
यही वह दुर्ग है जिसने 11वीं सदी से 18वीं सदी तक अनेकानेक उतार-चढ़ाव देखते गौरी, खिलजी, फिरोजशाह तुगलक और ऐसे ही दूसरे मुगलों के भीषण हमलों को लगातार झेला है। कभी सिंधु, मिस्र, इराक, कांधार और मुलतान आदि देशों का व्यापारिक कारवां देश के अन्य भागों को यहीं से जाता था। कहते हैं कि 1661 से 1708 ई. के बीच यह दुर्ग नगर समृद्धि के चरम शिखर पर पहुंच गया। व्यापारियों ने यहां स्थापत्य कला में बेजोड़ हवेलियों का निर्माण कराया तो हिन्दू, जैन धर्म के मंदिरों की आस्था का भी यह प्रमुख केंद्र बना।
कहा जाता है कि महाभारत काल में जब युद्ध समाप्त हो गया और भगवान कृष्ण ने अर्जुन को साथ लेकर द्वारिका की ओर प्रस्थान किया, तब इसी नगर से कभी उनका रथ गुजरा था। रेगिस्तान के बीचोबीच यहां की त्रिकुट पहाड़ी पर कभी महर्षि उत्तुंग ने तपस्या की थी।
पन्हाला किला : पन्हाला किला महाराष्ट्र के पन्हाला क्षेत्र में है। इस किले का निर्माण लगभग 900 साल पहले 12वीं शताब्दी में राजा भोज ने कराया था। इस किले का निर्माण सुरक्षा के उद्देश्य से किया गया था और यहां पर प्रवेश मजबूत दोहरी दीवारों से किया जा सकता था।
पन्हाला किले को पन्हालगढ़, पाहाला और पनाल्ला के नाम से भी जाना जाता है। इसका शाब्दिक अर्थ है ‘सांपों का घर’। पन्हाला किला महाराष्ट्र के कोल्हापुर से उत्तर-पश्चिम दिशा में 20 किलोमीटर दूर स्थित है।
इसका निर्माण शिल्हर शासक भोज-II द्वारा सन् 1178 से 1209 के बीच सहयाद्री पर्वत श्रृंखला से जुड़े ऊंचे भू-भाग पर करवाया गया था। इस किले का आकार कुछ त्रिकोण-सा है और चारों तरफ के परकोटे की लंबाई लगभग 7.25 किलीमीटर बताई जाती है।
यह किला कई राजवंशों के अधीन रह चुका है। यादवों, बहमनी, आदिलशाही आदि के हाथों से होते-होते सन् 1673 में इस किले का आधिपत्य छत्रपति शिवाजी के अधीन हो गया। शिवाजी ने इस किले को अपना मुख्यालय बना लिया था।
सिंधुदुर्ग : 'सिंधुदुर्ग' नाम मूल रूप से मराठी शब्द है जिसका मतलब है- महासागर पर निर्मित किला या महासागर किला। सिंधुदुर्ग किले को छत्रपति शिवाजी द्वारा 1664 से 1667 तक 3 साल के भीतर बनवाया गया था। 'कर्टे द्वीप' पर खड़े इस विशाल किले का निर्माण करने के लिए गोवा से 100 पुर्तगाली वास्तुविज्ञ और 3,000 मजबूत कारीगरों को तैनात किया गया था।
यह किला मराठा साम्राज्य के स्वर्णिम युग का मूक गवाह और अरब सागर में मराठों के आधिपत्य का प्रत्यक्ष प्रमाण है। किले में शिवाजी को समर्पित एक मंदिर भी है जिसे राजाराम ने बनवाया था। किले की दीवारों पर राजा के हाथ और पैरों के निशान देखे जा सकते हैं।
मुंबई से 400 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सिंधुदुर्ग ऊंचे पहाड़ों, समंदर का किनारा और एक शानदार दृश्यों के साथ संपन्न यह जगह पर्यटकों को आकर्षित करती है।
पूरा जिला ही घने वन से आच्छादित है। वनस्पतियों और पशु वर्ग की बहुत-सी प्रजातियां किसी भी प्रकृति प्रेमी को खुश करने के लिए काफी हैं। तेंदुआ, जंगली सूअर, नेवला, जंगली खरगोश, हाथी, जंगली भैंस और मकाक बंदर जैसे जंगली जानवर यहां पाए जाते हैं। सिंधुदुर्ग किले में 42 बुर्ज के साथ टेढ़ी-मेढ़ी दीवारें हैं। निर्माण सामग्री में ही करीब 73,000 किलो लोहा शामिल हैं।
ग्वालियर किला : मध्यप्रदेश स्थित ग्वालियर में राणा मानसिंह तोमर ने एक किला बनाया था। किले के अंदर कदम रखते ही वहां पर तीन मंदिर, छः महल एवं जलाशय स्थित हैं। मान्यता है कि उत्तर एवं केंद्र भारत में ग्वालियर किला बहुत ही सुरक्षित है।
किले में कई तरह के भव्य मंदिर स्थित है। इन मंदिरों में हजारों भक्त एकत्रित होते हैं। तेली-का-मंदिर में नौवीं सदी के द्रविड़ वास्तुशिल्प से प्रभावित होकर खूबसूरत स्मारक बनाए गए हैं। ग्वालियर किले में भिन्न प्रकार के महल स्थित हैं जैसे कि करण महल, जहाँगीर महल, शाहजहाँ मंदिर एवं गुरजरी महल आदि।
गोलकोंडा किला : आंध्र प्रदेश के हैदराबाद शहर में कोल्लू झील के पास बसे हीरे की खान के लिए प्रसिद्ध गोलकोंडा का किला काकतिया राजा ने बनवाया था। यह किला अपने समृद्ध इतिहास और राजसी भव्य संरचना के लिए जाना जाता है।
इस किले को हैदराबाद के सात आश्चर्य के रूप में जाना जाता है। इस किले के अलावा यहां पर आपको चारमीनार, बिरला मंदिर, रामोजी फिल्म सिटी, हुसैन सागर, सालारजंग म्यूजियम और मक्का मस्जिद जैसी कई दर्शनीय जगहें हैं।
कांगड़ा किला : हिमालयीन राज्य हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में बाणगंगा और माझी नदियों के संगम पर कांगड़ा के शाही परिवार ने इस किले का निर्माण किया था। यह दुनिया के सबसे पुराने किलो में से एक है। इस किले में वज्रेश्वरी मंदिर है।
किलों और मंदिरों के अलावा हिमाचल अपनी खूबसूरती के लिए भी प्रसिद्ध है। हिमाचल की काफी सारी इमारतें धर्मशाला के पास भी हैं।
मेहरानगढ़ किला : राव जोधा द्वारा बनवाया गया यह किला राजस्थान के जोधपुर शहर में स्थित है। काफी ऊंचाई पर स्थित यह किला 500 साल से भी ज्यादा पुराना माना जाता है।
इस किले में सात गेट हैं। प्रत्येक गेट राजा के किसी युद्ध में जीतने पर स्मारक के रूप में बनवाया गया था। किले के अंदर मोती महल, शीश महल, चामुंडा देवी का मंदिर और म्यूजियम इस किले के अंदर ही हैं। इस किले का म्यूजियम राजस्थान का सबसे अच्छा म्यूजियम माना जाता है।
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