प्रयाग में कुम्भ का ज्योतिषीय महत्व
कुम्भ की गणना तीन प्रमुख ग्रहों के आधार पर की जाती है। कालचक्र में ग्रहों के राजा सूर्य, रानी चन्द्रमा तथा ग्रहों के गुरू देवगुरू बृहस्पति का महत्वपूर्ण स्थान है। इन तीनों ग्रहों का विशेष राशियों में संचरण ही कुम्भ पर्व का प्रमुख आधार है।
प्रत्येक बारह वर्ष बाद कुम्भ का पौराणिक पर्व प्रयागराज में मनाया जाता है, हर बारह साल बाद ही कुम्भ पर्व पड़ता है क्योंकि देवगुरू बृहस्पति लगभग एक वर्ष के अंतराल पर अपनी राशि परिवर्तन करते हैं और बारह राशियों के भचक्र (राशिपथ) को बारह वर्ष में पूर्ण करते हैं। प्रत्येक बारह वर्ष बाद जब बृहस्पति का संचरण वृष राशि में हो और सूर्य, चन्द्रमा मकर राशि में सिथत हों तो माघ मास में इस महापर्व में प्रयाग सिथत त्रिवेणी संगम पर स्नान, दान, मोक्ष का द्वार खोलता है, ऐसी धार्मिक मान्यताएं हैं।
मकरे च दिवानाथे वृषगे च बृहस्पतौ। कुम्भयोगो भवेत तत्र प्रयागे हि अतिदुर्लभे।।
(स्कन्दपुराण)
(स्कन्दपुराण)
स्कन्दपुराण के अनुसार जब भी बृहस्पति वृष राशि में तथा सूर्य मकर राशि में अमावस्या को होंगे, उस दिन प्रयाग (इलाहाबाद) में पूर्ण कुम्भ होगा, वर्ष 2013 में यह योग प्राप्त हो रहा है। पुराणों में वर्णन मिलता है कि समुद्र मंथन के समय अमृत कुम्भ को लेकर धनवन्तरि रूप में श्री विष्णु भगवान प्रकट हुए थे, उस समय इन्द्र का पुत्र जयन्त अमृत कुम्भ को लेकर भागा। उसके भागते समय जहां-जहां अमृत बिन्दु
छलककर पृथ्वी पर गिरे, उन श्रेष्ठ तीर्थों (हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक) की भूमि अमृतमयी (अर्थात मुकित प्रदान करने वाली )बन गर्इ। चारों स्थानों पर क्रमश: प्रति बारहवें वर्ष पूर्ण कुम्भ का योग होता है। श्रद्धालुओं को चाहिए कि सम्पूर्ण माघ मास पर्यन्त कल्पवासी बनकर प्रयाग में रहें और श्रद्धा भकित पूर्वक नित्य प्रति पूण्यतोया त्रिवेणी में स्नान, दान करते हुए धर्मानुष्ठान, सत्संग तथा दान पुण्य करें।कुम्भ स्नान महापर्व में पौषपूर्णिमा, मकर संक्रानित, मौनी अमावस्या, बसन्त पंचमी, माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि प्रमुख स्नान पर्व माने गए हैं। बिना किसी आवाहन व निमंत्रण के करोड़ों श्रद्धालुओं का देश-विदेश से यहां आना और अपने को धन्य मानना अपने आप में तीर्थराजप्रयाग कुम्भ पर्व के महत्व को दर्शाता है। पदमपुराण के अनुसार जो श्रद्धालु माघ भर प्रयागराज में स्नान करते हैं उन्हें जन्म-मरण के बन्धन से मुकित मिलती है इसलिए इस पवित्र स्थल पर प्रवास, स्नान, दर्शन, दान कर श्रद्धालु पुण्य-लाभ अर्जित करते हैं।
छलककर पृथ्वी पर गिरे, उन श्रेष्ठ तीर्थों (हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक) की भूमि अमृतमयी (अर्थात मुकित प्रदान करने वाली )बन गर्इ। चारों स्थानों पर क्रमश: प्रति बारहवें वर्ष पूर्ण कुम्भ का योग होता है। श्रद्धालुओं को चाहिए कि सम्पूर्ण माघ मास पर्यन्त कल्पवासी बनकर प्रयाग में रहें और श्रद्धा भकित पूर्वक नित्य प्रति पूण्यतोया त्रिवेणी में स्नान, दान करते हुए धर्मानुष्ठान, सत्संग तथा दान पुण्य करें।कुम्भ स्नान महापर्व में पौषपूर्णिमा, मकर संक्रानित, मौनी अमावस्या, बसन्त पंचमी, माघी पूर्णिमा और महाशिवरात्रि प्रमुख स्नान पर्व माने गए हैं। बिना किसी आवाहन व निमंत्रण के करोड़ों श्रद्धालुओं का देश-विदेश से यहां आना और अपने को धन्य मानना अपने आप में तीर्थराजप्रयाग कुम्भ पर्व के महत्व को दर्शाता है। पदमपुराण के अनुसार जो श्रद्धालु माघ भर प्रयागराज में स्नान करते हैं उन्हें जन्म-मरण के बन्धन से मुकित मिलती है इसलिए इस पवित्र स्थल पर प्रवास, स्नान, दर्शन, दान कर श्रद्धालु पुण्य-लाभ अर्जित करते हैं।
प्रयाग कुम्भ अन्य कुम्भों से अधिक महत्वपूर्ण - प्रयाग का कुम्भ अन्य कुम्भों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रकाश की ओर ले जाता है, प्रयाग ऐसा स्थान है जहाँ बुद्धिमत्ता का प्रतीक सूर्य का उदय होता है। इस स्थान को ब्रह्राण्ड का उदगम और पृथ्वी का केंद्र माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि ब्रह्राण्ड की रचना से पहले ब्रम्हाजी ने यही अश्वमेघ यज्ञ किया था। दश्व्मेघ घाट और ब्रम्हेश्वर मंदिर इस यज्ञ के प्रतीक स्वरुप अभी भी यहाँ मौजूद है। इस यज्ञ के कारण भी कुम्भ का विशेष महत्व है। कुम्भ और प्रयाग एक दूसरे के पर्यायवाची है। स्थलीय और खगोलीय ब्रह्रांड में प्रयाग के महत्व को व्यापक रूप से जाना जाता है। संगम के पवित्र जल में स्नान करके पापों से मुक्ति मिल जाती है। कुम्भ के दौरान इस स्नान का महत्व और बढ़ जाता है। शास्त्रों के अनुसार सिद्धि, मुकित, मोक्ष प्रदान करने वाले तीर्थों के राजा तीर्थराज प्रयाग जैसा तीर्थ सम्पूर्ण भूमण्डल पर दूसरा नही है,
त्रिवेणी माधवं सोमं भारद्वाजं वासुकीम वन्दे अक्षयवटं शेषं प्रयागं तीर्थनायकं।।
ज्योतिषाचार्य आशुतोष वाष्र्णेय
निदेशक, ग्रह नक्षत्रम ज्योतिष शोध संस्थान
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