सम्पूर्ण चाणक्य नीति
Quote 101: निर्बल राजा को तत्काल संधि करनी चाहिए।
Quote 102: पडोसी राज्यों से सन्धियां तथा पारस्परिक व्यवहार का आदान-प्रदान और संबंध विच्छेद आदि का निर्वाह मंत्रिमंडल करता है।
Quote 103: राज्य को नीतिशास्त्र के अनुसार चलना चाहिए।
Quote 104: निकट के राज्य स्वभाव से शत्रु हो जाते है।
Quote 105: किसी विशेष प्रयोजन के लिए ही शत्रु मित्र बनता है।
Quote 106: आवाप अर्थात दूसरे राष्ट्र से संबंध नीति का परिपालन मंत्रिमंडल का कार्य है।
Quote 107: दुर्बल के साथ संधि न करे।
Quote 108: ठंडा लोहा लोहे से नहीं जुड़ता।
Quote 109: संधि करने वालो में तेज़ ही संधि का हेतु होता है।
Quote 110: शत्रु के प्रयत्नों की समीक्षा करते रहना चाहिए।
Quote 111: बलवान से युद्ध करना हाथियों से पैदल सेना को लड़ाने के समान है।
Quote 112: कच्चा पात्र कच्चे पात्र से टकराकर टूट जाता है।
Quote 113: संधि और एकता होने पर भी सतर्क रहे।
Quote 114: शत्रुओं से अपने राज्य की पूर्ण रक्षा करें।
Quote 115: शक्तिहीन को बलवान का आश्रय लेना चाहिए।
Quote 116: दुर्बल के आश्रय से दुःख ही होता है।
Quote 117: अग्नि के समान तेजस्वी जानकर ही किसी का सहारा लेना चाहिए।
Quote 118: राजा के प्रतिकूल आचरण नहीं करना चाहिए।
Quote 119: व्यक्ति को उट-पटांग अथवा गवार वेशभूषा धारण नहीं करनी चाहिए।
Quote 120: देवता के चरित्र का अनुकरण नहीं करना चाहिए।
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