Saturday, 4 April 2015

चाणक्य नीति-दर्पण

By flipkart   Posted at  04:00   No comments

                                   चाणक्य नीति-दर्पण

 

Quote 121: ईर्ष्या करने वाले दो समान व्यक्तियों में विरोध पैदा कर देना चाहिए।

Quote 122: चतुरंगणी सेना (हाथी, घोड़े, रथ और पैदल) होने पर भी इन्द्रियों के वश में रहने वाला राजा नष्ट हो जाता है।

Quote 123: जुए में लिप्त रहने वाले के कार्य पूरे नहीं होते है।

Quote 124: शिकारपरस्त राजा धर्म और अर्थ दोनों को नष्ट कर लेता है।

Quote 125: शराबी व्यक्ति का कोई कार्य पूरा नहीं होता है।

Quote 126: कामी पुरुष कोई कार्य नहीं कर सकता।

Quote 127: पूर्वाग्रह से ग्रसित दंड देना लोकनिंदा का कारण बनता है।

Quote 128: धन का लालची श्रीविहीन हो जाता है।

Quote 129: दण्डनीति के उचित प्रयोग से ही प्रजा की रक्षा संभव है।

Quote 130: दंड से सम्पदा का आयोजन होता है।

Quote 131: दण्डनीति के प्रभावी न होने से मंत्रीगण भी बेलगाम होकर अप्रभावी हो जाते है।

Quote 132: दंड का भय न होने से लोग अकार्य करने लगते है।

Quote 133: दण्डनीति से आत्मरक्षा की जा सकती है।

Quote 134: आत्मरक्षा से सबकी रक्षा होती है।

Quote 135: आत्मसम्मान के हनन से विकास का विनाश हो जाता है।

Quote 136: निर्बल राजा की आज्ञा की भी अवहेलना कदापि नहीं करनी चाहिए।

Quote 137: अग्नि में दुर्बलता नहीं होती।

Quote 138: दंड का निर्धारण विवेकसम्मत होना चाहिए।

Quote 139: दंडनीति से राजा की प्रवति अर्थात स्वभाव का पता चलता है।

Quote 140: स्वभाव का मूल अर्थ लाभ होता है। 

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